सोलन: लोकसभा चुनाव 2024 जैसे-जैसे समीप आ रहे हैं, चुनावी समीकरणों में भी रोज नए बदलाव हो रहे हैं। शिमला लोकसभा से भाजपा से दो बार सांसद रहे वीरेंद्र कश्यप की कांग्रेस से शिमला संसदीय सीट पर चर्चा ने भाजपा खेमे की चिंता बढ़ा दी हैं। अब यदि वीरेंद्र कश्यप बीजेपी को बाय-बाय कर कांग्रेस का दामन थाम लेते हैं, तो सुरेश कश्यप की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इसकी बड़ी वजह एंटी इनकम्बेंसी के साथ-साथ भाजपा की गुटबाजी व बीते विधानसभा चुनावों में बागी कांग्रेसियों की वापसी मानी जा रही है। कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष रहे जीआर मुसाफिर सहित कुछ दिग्गज कांग्रेसी बागियों की वापसी जल्द होने के संकेत भी मिले हैं। जीआर मुसाफिर का पार्टी के प्रति प्रेम और हाल ही में कांग्रेस से बगावत करने वाले विधायकों के खिलाफ उनकी बयानबाजी ने राजनीति का रुख भी मोड़ दिया है। संकेत तो यह भी मिले हैं कि मुसाफिर सहित अर्की और चौपाल के बगावती भी वीरेंद्र कश्यप के पक्ष में सहमत नजर आ रहे हैं।
जाहिर है कि कांग्रेस संगठन और सरकार दोनों मोदी लहर का रुख मोडऩे को बेताब नजर आ रहे हैं। यही नहीं, टिकट की दौड़ में शामिल रहे अमित नंदा व दयाल प्यारी भी पार्टी के प्रति अपनी पूरी निष्ठा की पुष्टि करते हुए वीरेंद्र कश्यप के नाम पर संपूर्ण समर्पण कर सकते हैं। अब यदि कांग्रेस का खेमा हर तरह से एकजुट होकर इस चर्चा को अमलीजामा पहना देता है, तो न केवल प्रतिभा सिंह, बल्कि जीआर मुसाफिर, अमित नंदा, दयाल प्यारी का कद भी पार्टी में और ज्यादा बढ़ जाएगा। सूत्र की मानें तो मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और पार्टी के रणनीतिकार इस रणनीति पर अपनी लगभग मुहर भी लगा चुके हैं। अब यदि वीरेंद्र कश्यप की बात की जाए तो वह लंबे समय से भाजपा में हाशिए पर चल रहे हैं।
उनका दो बार का सांसद का कार्यकाल बेहतर रहा है। यही नहीं, सिरमौर में उनकी ससुराल है और गिरिपार ट्राइबल दर्जे के मुद्दे पर उनका संघर्ष सब जानते हंै। सोलन उनका गृह जिला है। इसके साथ-साथ भाजपा के मौजूदा संगठन नेतृत्व को लेकर सिरमौर और सोलन में भारी नाराजगी भी चल रही है। ऐसे में जहां वीरेंद्र कश्यप का कांग्रेसी खेमे में आना लगभग तय माना जा रहा है, वहीं पुराने कांग्रेसियों की वापसी भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं दे रही है।
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