पंजाब दस्तक डेस्क, दुनिया में सबसे ज्यादा गेहूं-चावल का उत्पादन करने में भारत दूसरे नंबर पर है तों इसी भारत में 70 फीसदी से ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिन्हें हेल्दी डाइट नहीं मिल रही.
इन दो आंकड़ों से एक बात समझ आती है. और वो ये कि चीन के बाद सबसे ज्यादा गेहूं और चावल पैदा करने वाले भारत में 70% से ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिन्हें हेल्दी डाइट नहीं मिल रही है.
ये जानकारी संयुक्त राष्ट्र की ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2022’ रिपोर्ट में दी गई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 तक दुनियाभर में 307.42 करोड़ लोग ऐसे थे जिन्हें हेल्दी डाइट नहीं मिल रही थी. यानी, दुनिया की 42 फीसदी आबादी हेल्दी डाइट नहीं ले पा रही है. वहीं, भारत में हेल्दी डाइट नहीं लेने वालों की संख्या 97.33 करोड़ है. इस हिसाब से 70 फीसदी भारतीयों को हेल्दी डाइट नहीं मिल रही है.
इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि हर दिन एक व्यक्ति हेल्दी डाइट लेता है तो उसे कितना खर्च करना होगा? इसमें बताया गया है कि भारत में एक दिन एक व्यक्ति हेल्दी डाइट लेता है, तो उसे इसके लिए 2.9 डॉलर यानी 235 रुपये से ज्यादा खर्च करना होगा. इस हिसाब से हर दिन हेल्दी डाइट लेने के लिए हर व्यक्ति पर हर महीने 7 हजार रुपये से ज्यादा का खर्च आएगा. ये बताता है कि महंगा खाना होने की वजह से लोग हेल्दी डाइट नहीं ले पा रहे हैं.
हालांकि, ये रिपोर्ट ये भी कहती है कि भारत में हालात सुधर रहे थे, लेकिन कोरोना महामारी ने इस पर ब्रेक लगा दिया. 2017 में 75% भारतीयों को हेल्दी डाइट नहीं मिल रही थी. 2018 में ये संख्या कम होकर 71.5% और 2019 में 69.4% पर आ गई, लेकिन 2020 में ये आंकड़ा फिर बढ़कर 70% के पार चला गया.
भारत में ये समस्या कितनी बड़ी है, इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि हमसे ज्यादा आबादी चीन की है, लेकिन वहां हेल्दी डाइट नहीं लेने वालों की संख्या भारतीयों की तुलना में 5 गुना कम है. चीन में 17 करोड़ से भी कम लोग ऐसे हैं, जो हेल्दी डाइट नहीं ले पा रहे हैं.
कुपोषण बढ़ा या घटा?
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 15 साल में कुपोषित लोगों की संख्या कम तो जरूर हुई है, लेकिन दुनिया में कुपोषित भारतीयों की संख्या बढ़ गई है.
रिपोर्ट के मुताबिक, 2004-06 में 24.78 करोड़ लोग कुपोषित थे, जिनकी संख्या 2019-21 में घटकर 22. 43 करोड़ हो गई. लेकिन 2004-06 में दुनियाभर के कुल कुपोषितों में 31% भारतीय थे, जबकि 2019-21 में भारतीयों की संख्या बढ़कर 32% हो गई.
इतना ही नहीं, अभी भी भारत में 5 साल से कम उम्र के 2 करोड़ से ज्यादा बच्चे ऐसे हैं, जिनका वजन ऊंचाई के हिसाब से कम है. जबकि, 5 साल से छोटे 3.6 करोड़ से ज्यादा बच्चे ठिगने हैं.
पिछले साल नवंबर में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) की रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि 6 से 23 महीने के सिर्फ 11.3% बच्चे ही ऐसे हैं, जिन्हें पर्याप्त डाइट मिलती है.
ये सब उस भारत में, जहां…
– अमेरिका की फॉरेन एग्रीकल्चर सर्विस (FAS) का कहना है कि दुनिया में सबसे ज्यादा चावल और गेहूं का उत्पादन चीन के बाद भारत में होता है. कृषि मंत्रालय के मुताबिक, 2021-22 में भारत में करीब 13 करोड़ टन चावल और 11 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ था.
– भारत में नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट के तहत गरीबों को सस्ती दरों पर अनाज मिलता है. मार्च 2020 से केंद्र सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ गरीबों को हर महीने 5 किलो अनाज मुफ्त दे रही है. ये योजना सितंबर 2022 तक लागू है. इस पर सरकार 3.40 लाख करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है.
– सभी सरकारी स्कूलों में पहली से 8वीं तक पढ़ने वाले या 6 से 14 साल की उम्र के बच्चों को दोपहर का खाना मुफ्त दिया जाता है. अब इस योजना का नाम मिड-डे मील स्कीम से बदलकर पीएम-पोषण स्कीम कर दिया गया है. पीएम-पोषण के तहत, 2021-22 से 2025-26 तक 1.31 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे.