हिमाचल में नजर आने वाले सांपों में 80 फीसदी जहरीले नहीं हैं। 20 से 22 प्रतिशत ही विषैले होते हैं। विषहीन सांपों के विषदंत नहीं होते हैं। कुछ निर्विष सांपों के मुख स्राव में शिकार को निष्क्रिय करने की क्षमता है, लेकिन इस दंश से कोई मरता नहीं है। डसे स्थान पर हल्की सूजन, खुजली, लालिमा हो सकती है, मगर सर्पदंश का भय समाज में इतना अधिक है कि अनेक व्यक्ति केवल डर के कारण ह्दयघात से मर जाते हैं।
आयुर्वेद ग्रंथ में इसे शंका विष कहा जाता है। यह खुलासा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के राज्य संसाधन केंद्र की ओर से करवाए अध्ययन में हुआ। पहली बार हिमाचल में सांपों पर इस तरह का विस्तृत अध्ययन हुआ है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान शिमला में कार्यरत पद्मश्री डॉ. ओमेश भारती, स्कूल ऑफ नेचुरल साइंसेज बंगोल यूनिवर्सिटी यूके की डॉ. अनीता मल्होत्रा, डॉ. वोल्फगेंग वोस्टर, कैप्टिव एंड फील्ड हर्पेटोलॉजी एंगलेस यूके के डॉ. जॉन बेंजामिन ओवेन, तेजपुर यूनिवर्सिटी असम की डॉ. अर्चना डेका ने संयुक्त रूप से अध्ययन किया है।
हिमाचल के विषैले सांपों की प्रजातियों में करैत नाग यानी कोबरा, रसल्स वाइपर यानी घुणस और फुरसा मुख्य हैं। करैत के काटने पर पांच से दस घंटे में मृत्यु हो सकती है। करैत सांप रात को चूहों की खोज में घरों में निकलते हैं और गलती से मनुष्य को काटते हैं। केंद्रीय अनुसंधान संस्थान कसौली में बनने वाला स्नेक एंटी वीनम चारों सांपों की प्रभावी औषधि है।
रैट स्नेक को नासमझी से मार देते हैं लोग, वास्तव में मददगार
धामन या रैट स्नेक दो से तीन मीटर लंबा एक निर्विष सांप है। यह पेड़ पर चढ़ा हुआ या घर के भीतर अनाज के भंडार में देखा जाता है। यह दिन में घूमता है और इसमें काटने की प्रवृत्ति नहीं होती है। लोग इसे जहरीला समझकर देखते ही मार देते हैं। यह बड़ी संख्या में चूहों को खाता है। यह एक साथ 28 चूहों को निगल सकता है।
इतनी याददाश्त ही नहीं
कुछ सांपों को छोड़कर अधिकतर अकेले ही विचरण करते हैं। केवल समागम काल में ही कुछ समय इकट्ठा रहते हैं। कई बार कहा जाता है कि अगर किसी सांप को नुकसान पहुंचाया जाए तो उसका साथी बदला ले सकता है। अध्ययन के अनुसार सांपों के पास इतनी याददाश्त ही नहीं होती है कि वे ऐसा कुछ याद रख सकें। यह महज भ्रांति है।