शिमला, सुरेन्द्र राणा: कमजोर कंज्यूमर बेस के कारण गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी में हिमाचल प्रदेश का नुकसान हुआ है। जिस बद्दी, बरोटीवाला और नालागढ़ के औद्योगिक क्षेत्र से 3000 करोड़ रुपए से ज्यादा का वैल्यू एडेड टैक्स यानी वैट आता था, वहां से अब सिर्फ 150 से 200 करोड़ जीएसटी आ रहा है। इस नुकसान की भरपाई के लिए अब मुख्यमंत्री सुक्खू 16वें वित्त आयोग के चेयरमैन डा. अरविंद पनगढिय़ा से मिलने दिल्ली जा रहे हैं। 23 मई को यह मुलाकात तय हुई है।
हिमाचल सरकार यह तर्क दे रही है कि जीएसटी के कारण राज्यों को उल्टा नुकसान हो गया है। इस टैक्स सिस्टम को लागू करने से पहले हालांकि 14 फीसदी की नोशनल ग्रोथ के साथ भरपाई भी केंद्र सरकार ने की थी और जून 2022 तक कंपनसेशन भी राज्य को दिया गया, लेकिन यदि वैट सिस्टम ही रहता, तो भी राज्य को आज के मुकाबले फायदा था। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि जीएसटी सिर्फ वस्तु के उपभोग पर तय होता है, प्रोडक्शन पर नहीं। हिमाचल के फार्मा हब में बन रही दवाएं बाहरी राज्यों और देश में इस्तेमाल हो रही हैं, इसलिए जीएसटी भी वहीं जा रहा है और राज्य का नुकसान हो रहा है। यही सबसे बड़ी वजह है कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू औद्योगिक विस्तार की नीति में बदलाव चाहते हैं।
मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य सरकार ऐसे उद्योगों को बढ़ावा देना चाहती है, जिनसे जीएसटी की खपत राज्य में ही हो। बड़े कंज्यूमर बेस वाले राज्यों को हालांकि जीएसटी में फायदा हो रहा है। इसी कारण हिमाचल सरकार चाहती है कि वित्त आयोग केंद्रीय करों के हिस्सेदारी का फार्मूला बदले। इसके लिए मुख्यमंत्री तीन तरह के तर्क एडिशनल मेमोरेंडम में वित्त आयोग के सामने रखने जा रहे हैं। पहला तर्क रिवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में वृद्धि का है, क्योंकि हिमाचल कभी भी रेवेन्यू सरप्लस नहीं हो सकता। दूसरा तर्क फोरेस्ट वेल्थ के सही आकलन को लेकर है। इसमें राज्य सरकार यह तर्क दे रही है कि फोरेस्ट कवर के बजाय फोरेस्ट लैंड एरिया के हिसाब से हिमाचल को हिस्सा मिले। तीसरा तर्क जीएसटी सिस्टम से हो रहे नुकसान की भरपाई का है।
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