धर्म: हर साल, महाशिवरात्रि, फाल्गुन के महीने में मनाई जाती है। इस वर्ष, महाशिवरात्रि 18 फरवरी को मनाई जाएगी। जहां कुछ लोग महाशिवरात्रि का त्योहार दिन में मनाते हैं, वहीं अन्य रात में जागरण भी करते हैं। एक वर्ष में 12 शिवरात्रियों में से, महाशिवरात्रि को सबसे शुभ माना जाता है। इस दिन, भगवान शिव के भक्त प्रार्थना करते हैं, विशेष पूजा अनुष्ठान करते हैं और उपवास करते हैं। हिंदू धर्म ग्रंथ पुराणों के अनुसार भगवान शिव ही समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार उन्हीं से ब्रह्मा, विष्णु सहित समस्त सृष्टि का उद्भव हुआ है। ऐसा कहते हैं कि उनका न तो कोई आरंभ हुआ है और न ही अंत होगा। इसीलिए वे अवतार न होकर साक्षात ईश्वर हैं। भगवान भोलेनाथ के साथ जुड़े हुए नाग,त्रिशूल, चंद्रमा उनके प्रतीक माने जाते हैं। आइए जानते हैं भगवान भोलेनाथ से जुड़े प्रतीक और उनके महत्व के बारे में।
अर्धचंद्र
अर्धचंद्र भगवान भोलेनाथ का प्रतीक और आभूषण माना जाता है। भगवान भोलेनाथ अर्धचंद्र को अपनी जटा के हिस्से में धारण करते हैं। इसलिए भगवान भोलेनाथ को चंद्रशेखर कहा जाता है। भगवान शिव के सिर पर चन्द्र का होना समय को नियंत्रण करने का प्रतीक है क्योंकि चन्द्र समय को बताने का एक माध्यम है।
तृतीय नेत्र
भगवान भोलेनाथ के प्रतीकों में उनका तृतीय नेत्र आता है जो उनके माथे के बीच में है। शिव का तृतीय नेत्र भौतिक संसार से परे संसार को देखने का बोध कराता है। एक तरह से यह दृष्टि पांच इंद्रियों से अलग छठी इंद्रिय है। तृतीय नेत्र के कारण ही महादेव को त्र्यम्बक कहा गया है।
त्रिशूल
शिव अस्त्र के रूप में त्रिशूल हाथ में धारण करते हैं। भगवान भोलेनाथ का त्रिशूल मानव शरीर में मौजूद तीन मूलभूत नाड़ियों का सूचक है। इसके अतिरिक्त भोलेनाथ का त्रिशूल इच्छा, लड़ाई और ज्ञान का भी प्रतिनिधित्व करता है।
रुद्राक्ष
रुद्राक्ष के बारे में कहा जाता है रुद्राक्ष भगवान शिव के आंसुओं से बना है। कहते हैं जब भोलेनाथ गहन ध्यान से निकलकर आंखें खोली, तो उनकी आंख से आंसू की बूंद पृथ्वी पर गिर गयी और उनकी आंसू की बूंद पवित्र रूद्राक्ष के पेड़ में बदल गया। रुद्राक्ष संसार के निर्माण में प्रयोग हुए तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
+ There are no comments
Add yours