पंजाब दस्तक(सुरेन्द्र राणा); आसमान छूती सरसों के तेल की कीमतों ने जहां आम आदमी को परेशान किया है वहीं ऊंचे समर्थन मूल्य ने पंजाब के किसानों को भी सरसों की खेती की ओर आकर्षित किया है। जिस तेजी से किसान इसकी बिजाई को तवज्जो दे रहा है उससे साफ है, अब वह दिन दूर नहीं जब सूबा धान-गेहूं की तरह सरसों के लिए भी जाना जाएगा। खेती माहिरों की मानें तो सरसों का रकबा हर साल 15% बढ़ रहा है। उम्मीद है, इस रफ्तार से सूबे में उत्पादन 640500 क्विंटल से बढ़कर साढ़े 7 लाख क्विंटल तक पहुंचने की उम्मीद है।
42,700 हेक्टेयर में खेती
सूबे में साल 1960-61 के सीजन मे सरसों का रकबा 1,07,000 हेक्टेयर रहा। 2008-09 तक यह रकबा घटकर 29,000 हेक्टेयर हो गया यानी कि इन सालों में 78,000 हेक्टेयर रकबे में कमी आई। विभाग के मुताबिक साल 2019-20 में 32,000 हेक्टेयर हुआ। 2020 -21 में 33,500, 2021-22 में 42,700, 2023-24 में 50 से 60,000 हेक्टेयर के बीच होने के आसार हैं।
डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर एंड फार्मर्स वेलफेयर पंजाब के मुताबिक कीमतों में उछाल व ऊंचे भाव से प्रेरित किसान सरसों का रकबा बढ़ाने लगा है। पूर्व कृषि अफसर डॉ. सतनाम सिंह ने कहा, घटते रुझान का कारण मंडीकरण व रेट सही न मिलना रहा है। मिनिस्ट्री ऑफ एग्रीकल्चर एंड फार्मर्स वेलफेयर गवर्नेमेंट ऑफ इंडिया के मुताबिक सबसे खराब भूमिका सेहत माहिरों की रही, जो लोकल तेल में खामियां निकालते रहे।
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