शिमला, सुरेन्द्र राणा: कमला नेहरू अस्पताल (केएनएच) शिमला में जुड़वां बच्चों के पैदा होने के बाद उनकी मौत होने और गायब करने के आरोप लगाने वाली महिला गर्भवती ही नहीं थी। अस्पताल प्रबंधन के मुताबिक मेडिकल जांच रिपोर्ट में यह स्पष्ट हो गया है। जांच में यह बात भी सामने आई है कि महिला पर गर्भधारण को लेकर घर से काफी दबाव था। इसके अलावा महिला का पहले भी करीब छह बार गर्भपात हो चुके हैं। अब डीडीयू अस्पताल में करवाई मेडिकल जांच की रिपोर्ट में महिला के गर्भवती न होने की बात सामने आई है।इसके बाद महिला को इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) के मनोरोग विभाग में भेज दिया है। प्रदेश के एकमात्र सबसे बड़े मातृ एवं शिशु कमला नेहरू अस्पताल (केएनएच) में शनिवार को जुड़वा बच्चों को जन्म देने के बाद उनकी मौत होने और शव गायब करने का मंडी जिले के करसोग क्षेत्र की एक महिला ने गंभीर आरोप डॉक्टरों पर लगाए थे। इस मामले को लेकर शनिवार को रात डेढ़ बजे तक हंगामा होता रहा। मामले ने तूल पकड़ा तो स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी स्वयं मौके पर आए और केएनएच की जगह डीडीयू अस्पताल में महिला का मेडिकल करवाया गया।
महिला ने आरोप लगाया था कि उसने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया और अस्पताल प्रबंधन ने बच्चों को गायब कर दिया। महिला का दावा था कि उसकी प्रेग्नेंसी से जुड़ी फाइल भी हटा दी है। महिला, उसका पति और परिवार देर रात तक अस्पताल परिसर में हंगामा करते रहे। पुलिस ने अस्पताल में लगे सीसीटीवी फुटेज खंगाली तो सामने आया कि महिला अपने पति के साथ परिसर में घूमती रही लेकिन माइनर ओटी और लेबर रूम में नहीं गई। सुबह 10:24 बजे महिला अस्पताल में दाखिल हुई और 10:57 बजे मुख्य गेट से बाहर निकल गई। महिला के पास अस्पताल का कोई रिकॉर्ड भी नाहीं मिला।बताया जा रहा है कि महिला के दो प्रकार के टेस्ट करवाए। इनमें वह टेस्ट भी था जोकि डिलीवरी होने बाद दो दिन तक पॉजिटिव रहता है। महिला की मेडिकल रिपोर्ट शनिवार को अस्पताल प्रबंधन को मिली। रिपोर्ट में स्पष्ट हुआ है कि महिला गर्भवती ही नहीं थी। महिला का अब मानसिक स्थिति का मूल्यांकन किया जा रहा है, इसके अलावा उसे काउंसलिंग और अन्य आवश्यक उपचार के लिए आईजीएमसी में ओपिनियन के लिए भेजा जा रहा है।पुलिस भी इस मामले के हर पहलू की छानबीन कर रही है। पुलिस ने शनिवार को महिला की दीनदयाल उपाध्याय और आईजीएमसी में टेस्ट करवाए लेकिन महिला अभी पुलिस को बयान देने की स्थिति में नहीं है। डॉक्टरों की सलाह के बाद ही महिला के बयान दर्ज किए जाएंगे। पुलिस ने मामले की जांच करते हुए महिला की सास, जीजा और पति के बयान दर्ज किए हैं। इसमें वह अभी भी मानने तैयार नहीं है कि महिला गर्भवती नहीं थी।
अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एसएस नेगी ने कहा कि महिला द्वारा अस्पताल प्रबंधन के ऊपर लगाए आरोप गलत साबित हुए हैं। अधिकारियों से इस बारे में कानूनी सलाह ली जाएगी। इस बारे सख्त कदम उठाए जाएंगे ताकि लोग इस तरह से संस्थान का नाम खराब न कर सकें। मेडिकल रिपोर्ट में महिला गर्भवती नहीं निकली है। महिला का दो साल से इनफर्टिलिटी का उपचार चल रहा था। यह मामला स्यूडोसाइसिस का प्रतीत होता है, जिसमें महिला खुद को गर्भवती मानने लगती है जबकि वास्तविकता में ऐसा कुछ नहीं होता। इसे एक मनोवैज्ञानिक स्थिति माना जाता है, जिसमें महिला को लगता है कि वह गर्भवती है और उसके शरीर में गर्भावस्था जैसे लक्षण भी दिखाई देने लगते हैं, जैसे कि पेट बढ़ना, मासिक धर्म बंद होना।
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