चंबा/धर्मशाला, भाजपा के नेता, पूर्व डिप्टी स्पीकर एवं विधायक हंस राज ने कहा कि विक्रमादित्य सिंह ने अपने चंबा दौरे के दौरान केवल मात्र जनता को भटकने और गुमराह करने का प्रयास किया गया है। उन्होंने कहा कि अगर विक्रमादित्य के पिता पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश में पहली बार ऋण ना लेते तो शायद हिमाचल प्रदेश में ऋण लेने की आवश्यकता ना पड़ती।
हंस राज ने कहा मुख्यमंत्री ने विधानसभा में खुद कहा कि 2022-2023 में आखिरी तिमाही यानी 15 दिसंबर 2022 से लेकर 31 मार्च 2023 तक 6897 करोड़ रुपए का कर्ज लिया गया। इसी प्रकार वित्त वर्ष 2023-24 में पहली अप्रैल 2023 से 31 मार्च 2024 तक कुल 10521 करोड़ रुपए का लोन उठाया गया और फिर वित्त वर्ष 2024-25 में पहली अप्रैल 2024 से लेकर 31 जुलाई 2024 तक 3948 करोड़ रुपए का कर्ज लिया गया। तो अभी तक हिमाचल।प्रदेश मुख्यमंत्री के मुताबिक 21 जुलाई तक अपने कार्यकाल में 21366 करोड़ का ऋण के चुकी है और यूके बाद जो ऋण लिया गया उसका कुल जोड़ लगभग 30000 करोड़ पहुंच चुका है।
उन्होंने कहा कि प्रदेश के कर्मचारियों व पेंशनरों को हर महीने वेतन-पेंशन का भुगतान करने के लिए 2300 करोड़ रुपये की आवश्यकता रहती है। इस भुगतान तो करने के लिए भी सरकार को ऋण लेना पड़ता है और सरकार खेती है कि उन्होंने अपनी आमदनी बढ़ा दी, सरकार की आमदनी बड़ी को नहीं पर प्रदेश में वित्तीय संकट बढ़ा ही है।
विक्रमादित्य सिंह को जनता के समक्ष प्रदेश में कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए सकारात्मक कार्यों के बारे में बताना चाहिए पर वो बता नहीं पाते क्योंकि उन्होंने इस दिशा में कुछ किया ही नहीं है। जब से हिमाचल में कांग्रेस की सरकार आई है तब से प्रदेश में हो रहे विकास के सभी कार्यों पर पूर्ण रोक लग गई है।
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश के सभी विभागों, निगमों और बोर्डों को 31 मार्च, 2022 से पहले स्वीकृत ऐसी योजनाओं का बजट लौटाना होगा, जिन पर अभी तक काम शुरू नहीं हो सका है। वित्त एवं योजना विभाग ने संज्ञान लेते हुए सभी प्रशासनिक सचिवों को इस बाबत पत्र जारी किए हैं। अप्रयुक्त स्वीकृत राशि ब्याज सहित लौटाने के निर्देश दिए हैं। योजनाएं शुरू करने में आईं अड़चने दूर होने पर योजना विभाग को दोबारा संशोधित मंजूरी लेने का प्रावधान भी किया गया है। विभागों की ओर से बैंकों में जमा निधियों की समीक्षा के बाद बजट का सही उपयोग करने के लिए यह फैसला लिया गया है। इस प्रकार के निर्णयों से साफ दिखता है कि हिमाचल प्रदेश सरकार एक एक पैसे के लिए मोहताज हो रहा है।
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