पंजाब दस्तक; अपनी समृद्ध परंपराओं, आतिथ्य और भरपूर खाद्य क्षमता के लिए प्रख्यात पंजाब विगत कई वर्षों से नशे की समस्या से जूझ रहा है। सरकारें बदलीं, लेकिन स्थिति बद से बदतर होती चली गई। पंजाब में आप सरकार का कार्यकाल दो साल बीत चुके हैं, लेकिन पंजाब में नशे की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। नशा खत्म करने के सभी दावे फेल साबित हुए हैं, जबकि पंजाब में परिवारों का उजड़ना जारी है। युवा नशे की दलदल में धंसते जा रहे हैं। चुनाव-दर-चुनाव यह मुद्दा भाषणों में खूब उछलता है, लेकिन जमीनी हकीकत काफी अलग है। न तो नशे से होने वाली मौतें थमी हैं और न नशे की तस्करी।
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जब गुटका साहिब हाथ में लेकर एक चुनावी रैली में कहा था कि कांग्रेस की सरकार बनने पर वह चार सप्ताह में नशे की कमर तोड़ देंगे, तो इसका लोगों पर बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ा था। इस वादे के साथ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 77 सीटें जीत कर सत्ता में आई थी, लेकिन इस मुद्दे पर वह कुछ खास कर नहीं पाई। नशे की खेप के साथ इंस्पेक्टर इंद्रजीत को गिरफ्तार किया, तो इसके छींटे आला अधिकारियों की वर्दी पर भी पड़े।
पंजाब में हर चौथे दिन नशा 1 की जान ले रहा है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में पुलिस ने खुद शपथ पत्र देकर इसे स्वीकारा है। आलम यह है कि हर साल नशे की ओवरडोज से हो रही मौतों का आंकड़ा दोगुनी रफ्तार से बढ़ रहा है।
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