चंडीगढ़, 5 मार्च(सुरेंद्र राणा): बीजेपी अनुसूचित जाति मोर्चा पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष एस. आर, लद्दड़ ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से विधायक सुखविंदर कोटली द्वारा पूछे सवाल पर भगवंत मान द्वारा से उसे यह कहना कि “इसे दौरा पड़ा है, इसको जूता सूँघाओ” बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और घोर निंदनीय है। लेकिन इस घटना को, इस अपमान को पूरे दलित समुदाय का अपमान बताना, कोटली द्वारा समाज को भड़काने वाला बयान है।
एस. आर. लद्दड़ ने जारी अपने प्रेस बयान में कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा सदन में घटिया शब्दावली का प्रयोग उनकी ट्रेनिंग और उनकी मानसिकता को दर्शाता है। लेकिन कोटली को रोना नहीं चाहिए था, या तो उसे उसी लहजे में जवाब देना चाहिए था या फिर विनम्रता के साथ तर्कसंगत ढंग से अपनी बात रखनी चाहिए थी। आम आदमी पार्टी से उपमुख्यमंत्री की मांग करके वह कौन सा तीर मारना चाहते थे? उपमुख्यमंत्री भी एक मंत्री ही हैं। मुद्दे तो और भी बहत से हैं, पंजाब में अनुसूचित जाति आयोग का गठन नहीं करना, आयोग के सदस्यों की संख्या पंद्रह से घटाकर पांच करना, एक भी दलित को राज्यसभा में नहीं भेजना, कानूनी अधिकारियों की भर्ती में एक भी अनुसूचित जाति को प्रतिनिधित्व नहीं देना, न्यायिक सेवा में 45% संख्या की शर्त, 35% दलित आबादी के लिए 25% आरक्षण, कृषि विश्वविद्यालय और गडवासु में शून्य आरक्षण, 85 वें संविधान संशोधन को लागू न करना, पदोन्नति में उचित आरक्षण न देना और ऐसे कई मुद्दे हैं, जिन्हें सदन में उठाया जाना चाहिए। अगर उपमुख्यमंत्री बना भी दिया गया और उसे भी घटिया विभाग दिया गया तो उस पद का क्या फायदा? कोटली को भगवंत मान से पूछना चाहिए था कि 28 निगमों में चेयरमैन नियुक्त करते समय दलित प्रतिनिधित्व की अनदेखी क्यों की गई? जनता ने कोटली को विधानसभा में रोने के लिए नहीं भेजा था।
एस. आर. लद्दड़ ने कहा कि राजभाग मांगे नहीं जाते, उनके लिए संघर्ष करना पड़ता है और अगर आदमी अयोग्य हो तो राजभाग भी चले जाते हैं। कोटली ने रोना रो कर दलित समाज को शर्मसार किया है, जिसके लिए दलित समाज कभी भी उसके साथ खड़ा नहीं होगा या ऐसे रोने वाले का समर्थन नहीं करेगा।
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