शिमला, सुरेंद्र राणा: व्यवस्था परिवर्तन की बात करने वाली सुक्खू सरकार हिमाचल प्रदेश में एक बार फिर से प्रशासनिक ट्रिब्यूनल की बहाली कर दी है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल बैठक में यह निर्णय लिया गया है।हालांकि सरकार आर्थिक बदहाली का रोना रो रही है। दस गारंटियां धरातल पर नहीं उतर पाई है। ऐसे में ट्रिब्यूनल की बहाली सरकार के खजाने पर बोझ से ज्यादा कुछ नहीं है। प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में अध्यक्ष सहित 5 पद स्वीकृत किए गए हैं यानी ट्रिब्यूनल में 1 पद अध्यक्ष का होगा। इसके अलावा न्यायिक क्षेत्र से 1 सदस्य, प्रशासनिक क्षेत्र से 2 सदस्य व रजिस्ट्रार का 1 पद सृजित किया गया है। जिससे करोड़ों का बोझ सरकार पर पड़ेगा।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले पूर्व भाजपा सरकार ने ट्रिब्यूनल को भंग कर दिया था।पूर्व भाजपा सरकार के समय इससे संबंधित हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (विनिश्चत मामलों और लंबित आवेदनों का अंतकरण) विधेयक, 2019 को विधानसभा में प्रस्तुत किया था। इसके बाद ट्रिब्यूनल में लंबित 21 हजार मामलों को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के लिए हस्तांतरित किया गया था, साथ ही स्टाफ का समायोजन भी हाईकोर्ट में किया गया था। उस समय विधानसभा के भीतर कांग्रेस ने इसका विरोध किया था तथा विधानसभा चुनाव के समय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल को बहाल करने का आश्वासन दिया था।
इसके अलावा इसको खोलने को लेकर कर्मचारियों के अलग-अलग धड़ों में मतभेद रहे हैं। हालांकि अब ट्रिब्यूनल की बहाली के बाद कर्मचारियों से जुड़े मामलों की सुनवाई इसमें होगी, जिससे हाईकोर्ट का बोझ कितना कम होगा ये समय ही बताएगा।
हिमाचल प्रदेश में वर्ष 1986 में पहली बार प्रशासनिक प्राधिकरण का गठन किया गया था। फिर जुलाई 2008 में प्राधिकरण को बंद कर दिया गया। इसके बाद बाद लंबित पड़े मामलों को हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया। इसके बाद वीरभद्र सिंह सरकार के समय फरवरी 2015 में प्रशासनिक प्राधिकरण का पुन: गठन किया गया। सेवा संबंधी सारे मामले पुन: गठित किए गए प्रशासनिक प्राधिकरण के लिए स्थानांतरित किए गए।
बाद में जयराम सरकार के समय अगस्त 2019 में फिर से प्राधिकरण को बंद कर दिया गया और लंबित व निपटाए गए सारे मामलों का रिकॉर्ड फिर से हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया। मौजूदा सरकार फिर से प्रशासनिक प्राधिकरण खोलने का निर्णय ले चुकी है। प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के खुलने और और फिर बंद करने का सिलसिला कांग्रेस और बीजेपी की सरकारों के आने जाने के साथ बदस्तूर जारी हैं। ऐसे में इसकी कितनी जरूरत है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
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