लंका दहन के साथ देवी-देवताओं के महाकुंभ कुल्लू दशहरा का समापन, सैकड़ों ने खींचा रथ

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कुल्लू, सुरेंद्र राणा: लंका दहन की परंपरा के साथ ही कुल्लू में चल रहा सात दिवसीय अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का समापन हो गया। कुल्लू दशहरा के अंतिम दिन भगवान रघुनाथ ने रथ में सवार होकर लंका पर चढ़ाई की। भगवान रघुनाथ का रथ खींचने के लिए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ पड़े। इसके बाद भगवान रघुनाथ अपने देवालय सुल्तानुपर के लिए रवाना हो गए। वहीं, देवी-देवता भी अपने देवालयों की ओर प्रस्थान कर गए। रथयात्रा में 40 से अधिक देवी-देवता लाव-लश्कर के साथ शामिल हुए।

इससे पहले सोमवार दोपहर बाद करीब 2:45 बजे भगवान रघुनाथ के रथ के पास देवताओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हुआ। सभी देवी-देवता रथ के पास अपने-अपनी तय जगह पर बैठे। 3:00 बजे भगवान रघुनाथ रथ में सवार हुए। परंपराओं का निर्वहन करने के बाद 3:15 बजे रथयात्रा शुरू हुई और भगवान रघुनाथ लंका दहन की परंपरा निभाने निकले। देवता बिजली महादेव, पिरड़ी महादेव, जुआणी महादेव, माता हिडिंबा, चामुंडा सहित कई अन्य देवता भी रथयात्रा के साथ आगे बढ़े। इसके बाद भगवान रघुनाथ कैटल ग्राउंड के पास रुके, जबकि लंका दहन की परंपरा का राजपरिवार के लोगों ने लंकाबेकर स्थित एक स्थान पर निर्वहन किया।

इसमें माता हिडिंबा और राजपरिवार के लोगों की अहम भूमिका रही। लंका दहन की परंपरा के बाद भगवान रघुनाथ रथ मैदान में पहुंचे। इससे पहले कई देवता भगवान रघुनाथ से विदा लेकर अपने देवालयों की ओर रवाना हुए। रथ मैदान से पालकी में सवार होकर भगवान रघुनाथ अपने स्थायी शिविर सुल्तानपुर पहुंचे।

भगवान रघुनाथ के कारदार दानवेंद्र सिंह ने कहा कि लंका दहन की परंपरा के साथ ही दशहरा का समापन हो गया है। दशहरा के दौरान सभी देव परंपराओं का निर्वहन किया गया। वहीं हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने भगवान रघुनाथ के समक्ष शीश नवाया।

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