शिमला, सुरेंद्र राणा: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश भर में प्लास्टिक के अपशिष्ट और इसके प्रबंधन पर कड़ा संज्ञान लिया है। अदालत ने राज्य सरकार से कहा कि वह शपथपत्र देकर बताए कि प्रदेश में कितना प्लास्टिक आता है और कितने का निस्तारण किया जाता है। कितने प्लास्टिक को पुनर्चक्रण के लिए भेजा जाता है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने ये आदेश पारित किए। मामले की गंभीरता को देखते हुए अदालत ने शनिवार को सुनवाई की।

हालांकि शनिवार को अदालती कामकाज नहीं किया जाता है। इस दौरान अदालत को बताया गया कि प्रदेश भर में कूड़े कचरे का निस्तारण पर्यावरण मानकों के तहत नहीं किया जा रहा है। प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए सरकार ने कोई कारगर कदम नहीं उठाए हैं। प्लास्टिक की बोतलें और रेपर सार्वजनिक स्थानों में धड़ल्ले से फेंके जाते हैं।

प्रदेश में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और इसके कार्यान्वयन पर अदालत को बताया कि 59 शहरी समूह के साथ हिमाचल भारत का सबसे अच्छा शहरीकृत राज्य है। लेकिन कचरे की कम मात्रा भी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकती है। बद्दी में 970 करोड़ की लागत से बनने वाले ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को स्थापित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए हैं। नगर निगम धर्मशाला में कचरे को अनुपचारित तरीके से निष्पादन किया जा रहा है। इसी तरह सोलन में भी कचरे से निपटने के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं बनाया गया है। किन्नौर में एक करोड़ से कचरे के निष्पादन के लिए मशीन लगाई है, लेकिन कई वर्षों से ये बेकार है। हिमाचल में 29 नगर परिषद और 5 नगर निगम है। कहीं भी कचरे का नियमानुसार निष्पादन नहीं किया जा रहा है। मामले की गंभीरता को देखते हुए अदालत ने यह आदेश पारित किए।

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