हमीरपुर, सुरेन्द्र राणा: हमीरपुर भाजपा की राजनीति इन दिनों एक अहम बदलाव की दहलीज पर खड़ी है। एक ओर वर्षों से संगठन में पैठ जमाए पुराने धड़े अपने अस्तित्व की लड़ाई में उलझे हैं, तो दूसरी ओर सदर विधायक आशीष शर्मा का उभार नए समीकरणों को जन्म दे रहा है। बड़सर से विधायक और राजनीति के अनुभवी रणनीतिकार इंद्र दत्त लखनपाल तथा सुजानपुर के पूर्व विधायक राजेंद्र राणा जैसे नेता भी इस सियासी परिवर्तन की बयार में अपने अपने मोर्चे संभाले खड़े हैं।
आशीष शर्मा ने पांच साल में जनता के बीच अपनी मजबूत पैठ बना ली है। संघ विचारधारा से जुड़े होने के बावजूद उन्होंने चुनावी राजनीति में कदम रखते समय किसी दल के बजाय जनता का समर्थन चुना। उन्होंने 2022 से पहले क्षेत्र में व्यापक जनसंपर्क अभियान चलाया और युवाओं, महिलाओं को जोड़कर मजबूत जनाधार खड़ा किया। जब जनसभाओं में उनकी लोकप्रियता दिखाई देने लगी तो भाजपा ने उन्हें टिकट से वंचित कर दिया। कांग्रेस ने टिकट दिया, फिर वापस ले लिया। आशीष शर्मा ने निर्दलीय चुनाव लड़कर भारी मतों से जीत दर्ज की।
विधायक बनने के बाद उन्होंने कांग्रेस सरकार से समीकरण बनाए, लेकिन कुछ नेताओं ने भ्रम फैलाकर उनके समीकरणों को बिगाड़ा। राज्यसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को समर्थन दिया, विधायक पद से इस्तीफा दिया और भाजपा में लौट आए। उपचुनाव जीतकर फिर विधायक बने, लेकिन पार्टी संगठन में उनका विरोध जारी रहा।
अब आशीष शर्मा खुलकर सामने आए हैं। उन्होंने स्थानीय नेतृत्व पर संगठन को गुमराह करने और उन्हें दरकिनार करने के आरोप लगाए हैं। पुराने नेता उन्हें हाशिए पर रखने की साजिशों में जुटे हैं, जबकि आशीष शर्मा ने “राजनीति के कब्जाधारियों” के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उनका दावा है कि जनता का समर्थन और उनकी मेहनत ही उनकी ताकत है।
हमीरपुर भाजपा में इस समय साफ-साफ विभाजन दिख रहा है। एक ओर पुराने नेता अपने वर्चस्व को बचाने में जुटे हैं, वहीं दूसरी ओर जनता आधारित नेतृत्व बदलाव की दस्तक दे रहा है। यह संघर्ष आने वाले समय में हमीरपुर की राजनीति का चेहरा बदल सकता है।
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