कांगड़ा, अभय: हिमाचल प्रदेश: मुख्य अभियंता विमल नेगी की दुखद मृत्यु से भी सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा। पेखुवेला प्रोजेक्ट को लेकर मैंने सबसे पहले कुछ गंभीर सवाल उठाए थे, परंतु दुर्भाग्यवश सरकार ने उन चेतावनियों को नजरअंदाज़ किया। आज फिर वही लापरवाही और भ्रष्टाचार कांगड़ा जिला की फिना सिंह परियोजना में दिखाई दे रहा है। लेकिन इस बार इस मामले को कानूनी रूप से तार्किक अंजाम तक पहुंचाया जाएगा ।
कांगड़ा जिले में जल शक्ति विभाग द्वारा शुरू की गई फिना सिंह परियोजना के अंतर्गत लगभग 300 करोड़ रुपये की लागत से एक बांध का निर्माण किया जाना है। इस परियोजना का टेंडर इसी जून माह एक ऐसी कंपनी को दे दिया गया है जिसे बांध निर्माण का कोई अनुभव नहीं है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि विभाग ने जानबूझकर इस टेंडर से जॉइंट वेंचर की शर्त हटा दी, जिससे प्रतियोगिता पूरी तरह खत्म हो गई और केवल एक मनपसंद कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाया गया।
यह फैसला संविधान में उल्लेखित समान अवसर और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा की जो मूल भावना है उसका खुला उल्लंघन है। यह टेंडर जनरल फाइनेंशियल रूल्स का उल्लंघन है, जो जनधन के उपयोग में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करते हैं।
इसमें कंपटीशन एक्ट की भी सीधी अवहेलना की गई है क्यूंकि विभाग ने इस टेंडर में प्रतिस्पर्धा को ही ख़तम कर दिया । सुचना यह भी है कि कुछ वरिष्ठ अधिकारियों पर इस टेंडर को लेकर दबाव बनाए गए हैं, जो इस पूरे मामले को और भी गंभीर बना देती हैं।
मैं कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी से पूछना चाहता हूं कि क्या यही है वह “संविधान बचाओ” आंदोलन जिसकी बात आप देशभर में कर रहे हैं? हिमाचल प्रदेश में जहां आपकी ही पार्टी की सरकार है, वहां सरकारी संस्थाओं के माध्यम से संविधान को ही सबसे अधिक रौंदा जा रहा है – जो इस टेंडर प्रक्रिया में हुआ है ।
भ्रष्टाचार किसी भी प्रदेश को दीमक की तरह खोखला करता है। हमें ऐसा हिमाचल चाहिए जहां योजनाएं विकास के लिए बनें, न कि चहेतों की जेबें भरने के लिए। सरकारें आती जाती हैं, लेकिन जनहित सर्वोपरि होना चाहिए ।
हम इस टेंडर को पूर्णतः अवैध और जनविरोधी मानते हैं। इसकी निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए और यदि राज्य सरकार इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाती है, तो हम जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार, सेंट्रल विजिलेंस कमीशन और अन्य संस्थाओं के समक्ष ये बात उठाएंगे और दोषियों को बक्शा नहीं जाएगा । मैं सरकार को चेतावनी देता हूं कि अगर इस बार भी तथ्यों पर कार्रवाई नहीं की गई, तो मैं इस पूरे मामले को कानूनी रूप से एक निष्कर्ष तक ले जाऊंगा।
हम यह भी मांग करते हैं कि इस परियोजना के बढ़े-चढ़े हुए एस्टीमेट की निष्पक्ष जांच हो, क्योंकि यह परियोजना केंद्र व राज्य सरकार की 90:10 भागीदारी में बन रही है। बांध कोई छोटा मोटा प्रोजेक्ट नहीं होता। इसमें तकनीकी अनुभव और विशेषज्ञता जरूरी होती है। बिना अनुभव वाली कंपनी को यह काम देना सीधे-सीधे लाखों लोगों की जान, जल संपदा और जनता के पैसे के साथ खिलवाड़ है।
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