हिमाचल हाईकोर्ट का फैसला: विधवा बहू के पुनर्विवाह पर बेटे के माता-पिता होंगे पारिवारिक पेंशन के हकदार

शिमला,सुरेंद्र राणा: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए विधवा बहू के पुनर्विवाह पर बेटे के माता-पिता को पारिवारिक पेंशन का हकदार करार दिया है। हाईकोर्ट ने विधवा बहू की दूसरी शादी होने पर सास-ससुर की ओर से 24 साल बाद फैमिली पेंशन के लिए दायर याचिका को स्वीकार कर लिया है। न्यायाधीश संदीप शर्मा की अदालत ने 17 अगस्त, 1999 के केंद्र सरकार के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसके तहत याचिकाकर्ताओं की फैमिली पेंशन की मांग को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने प्रतिवादियों को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को फैमिली पेंशन की मांग पर विचार करने और नियम 50 के खंड 10 के अनुसार निर्णय लेने का निर्देश दिया है।

हाईकोर्ट के आदेशों की अनुपालना के लिए मामले की अगली सुनवाई 22 जुलाई को होगी। अदालत ने प्रतिवादियों की ओर से याचिका को दायर करने में 24 साल की देरी के तर्क को भी खारिज कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में, जहां कोई व्यक्ति लगातार नुकसान झेल रहा हो, न्याय के हित में देरी को नजरअंदाज किया जा सकता है। हालांकि, बकाया पेंशन का भुगतान याचिका दायर करने से तीन साल पहले तक ही सीमित रहेगा। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सीसीएस पेंशन नियम 50 के तहत, यदि विधवा दूसरी शादी करती है तो उसे फैमिली पेंशन नहीं दी जा सकती। माता-पिता ही पेंशन के हकदार होते हैं, बशर्ते कि वे मृत कर्मचारी पर निर्भर हों।

यहां जानिए पूरा मामला
याचिकाकर्ता शंकरी देवी और उनके पति सीताराम ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि उनका बेटा लेख राम 1979 में बीएसएफ में भर्ती हुआ था। वर्ष 1985 में शादी के दस दिन बाद ही बेटे का निधन हो गया था। शुरुआत में बहू को फैमिली पेंशन दी गई। 1990 में बहू ने दूसरी शादी कर ली, जिसके बाद बहू ने फैमिली पेंशन लेना बंद कर दिया था। उन्होंने विभाग के समक्ष कई बार पारिवारिक पेंशन देने का अनुरोध किया, लेकिन केंद्र सरकार ने यह कहकर मना कर दिया कि याचिकाकर्ता की ओर से 24 वर्ष के बाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसी आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें उन्होंने फैमिली पेंशन की मांग की थी। याचिकाकर्ता एक 83 वर्ष की वृद्ध महिला है। याचिका दायर करने के बाद वृद्ध महिला के पति की भी मौत हो चुकी है।

हाईकोर्ट के आदेशों की अनुपालना के लिए मामले की अगली सुनवाई 22 जुलाई को होगी। अदालत ने प्रतिवादियों की ओर से याचिका को दायर करने में 24 साल की देरी के तर्क को भी खारिज कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में, जहां कोई व्यक्ति लगातार नुकसान झेल रहा हो, न्याय के हित में देरी को नजरअंदाज किया जा सकता है। हालांकि, बकाया पेंशन का भुगतान याचिका दायर करने से तीन साल पहले तक ही सीमित रहेगा। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सीसीएस पेंशन नियम 50 के तहत, यदि विधवा दूसरी शादी करती है तो उसे फैमिली पेंशन नहीं दी जा सकती। माता-पिता ही पेंशन के हकदार होते हैं, बशर्ते कि वे मृत कर्मचारी पर निर्भर हों।यहां जानिए पूरा मामलायाचिकाकर्ता शंकरी देवी और उनके पति सीताराम ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि उनका बेटा लेख राम 1979 में बीएसएफ में भर्ती हुआ था। वर्ष 1985 में शादी के दस दिन बाद ही बेटे का निधन हो गया था। शुरुआत में बहू को फैमिली पेंशन दी गई। 1990 में बहू ने दूसरी शादी कर ली, जिसके बाद बहू ने फैमिली पेंशन लेना बंद कर दिया था। उन्होंने विभाग के समक्ष कई बार पारिवारिक पेंशन देने का अनुरोध किया, लेकिन केंद्र सरकार ने यह कहकर मना कर दिया कि याचिकाकर्ता की ओर से 24 वर्ष के बाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसी आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें उन्होंने फैमिली पेंशन की मांग की थी। याचिकाकर्ता एक 83 वर्ष की वृद्ध महिला है। याचिका दायर करने के बाद वृद्ध महिला के पति की भी मौत हो चुकी है।

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