शिमला, सुरेन्द्र राणा; राजधानी शिमला की सड़कों पर ट्रैफिक जाम अब लोगों के धैर्य की परीक्षा ले रहा है। हालत ये है कि सुबह स्कूल जाने वाले बच्चे हों या ऑफिस जाने वाले कर्मचारी, जाम में फंसना अब उनकी दिनचर्या बन गई है। विधानसभा से लेकर क्रॉसिंग तक का इलाका घंटों जाम से जूझता है। दोपहर तक जैसे ही स्कूल की छुट्टी होती है या लोग बाजार की ओर रुख करते हैं, वाहनों की लंबी कतारें पूरे शहर की रफ्तार थाम लेती हैं।
बालूगंज से चौड़ा। मैदान होते हुए आने वाली गाड़िया विधानसभा के पास जाम का असल वजह बनती हैं।
सड़कों पर खड़ी गाड़ियां बनीं मुसीबत
शहर के अधिकतर हिस्सों में सड़क किनारे पार्किंग की गई गाड़ियां ट्रैफिक को और भी धीमा कर देती हैं। कई स्थानों पर एक ही सड़क पर दोनों तरफ वाहन खड़े रहते हैं, जिससे सड़क संकरी हो जाती है। यातायात नियमों का पालन न होना और पार्किंग की स्पष्ट नीति का अभाव जाम का एक बड़ा कारण बन चुका है।
शिमला की सड़कों पर आम हो चला है जहां व्हाइट लाइन, जो सड़क की सुरक्षा सीमा दर्शाती है, उसके अंदर ही गाड़ियां खड़ी कर दी जाती हैं। यह न सिर्फ यातायात नियमों का उल्लंघन है, बल्कि पैदल चलने वालों और चालकों की सुरक्षा के लिए भी खतरा बन रहा है। व्हाइट लाइन के अंदर पार्किंग गैरकानूनी है — यह लाइन सड़क के किनारे की सीमा और सुरक्षा के लिए होती है, न कि पार्किंग के लिए बावजूद इसके कोई सख्त कार्यवाही नहीं होती है नतीजतन आम लोगों को घंटों जाम में बिताना पड़ता है।
शिमला में ट्रैफिक समस्या कोई नई नहीं है। पुलिस और प्रशासन ने “वन मिनट प्लान” जैसी पहल भी चलाई, जिसके तहत वाहनों को एक तय समयानुसार एक तरफ से छोड़ा जाता था। कुछ दिन ये योजना सफल भी रही, लेकिन जैसे ही भीड़ बढ़ी, सब कुछ फिर पुराने ढर्रे पर लौट गया हैं
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