डॉ. अंबेडकर को हराने की साजिश कांग्रेस द्वारा रची गई थी : जयराम

शिमला, डॉ भीमराव अंबेडकर सम्मान अभियान के अंतर्गत शिमला विधानसभा क्षेत्र के चौड़ा मैदान में आंबेडकर की प्रतिमा के समक्ष दीपोत्सव एवं पुष्पांजलि के कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम में नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर, महामंत्री बिहारी लाल शर्मा, अनुसूचित जाति मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष राकेश डोगरा, मीडिया प्रभारी कर्ण नंदा, जिला अध्यक्ष केशव चौहान, गौरव कश्यप, प्रत्याशी संजय सूद, सुरेश भारद्वाज, संजीव कटवाल, सुदीप महाजन , राजीव पंडित एवं बड़ी संख्या में कार्यकर्ता उपस्थित रहें।

जयराम ठाकुर ने कहा कि प्रतीकवाद से हाशिए पर जाने तक कांग्रेस ने डॉ. अंबेडकर की उपेक्षा की, डॉ. अंबेडकर को हराने की साजिश कांग्रेस द्वारा रची गई थी।1937 के बॉम्बे प्रेसीडेंसी विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने डॉ. आंबेडकर को हराने के प्रयास में प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी बालू पालवंकर को उनके खिलाफ मैदान में उतारा। हालांकि बालू पालवंकर चुनाव हार गए, लेकिन इस प्रयास ने कांग्रेस की डॉ. अंबेडकर के प्रति विरोध की भावना को स्पष्ट रूप से उजागर कर दिया। इसी प्रकार कांग्रेस के बंबई प्रीमियर, बी.जी. खरे ने यह सुनिश्चित किया कि डॉ. अंबेडकर को संविधान सभा में चुना न जाए। यह नामसुद्र नेता, योगेन्द्रनाथ मंडल थे, जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि डॉ. अंबेडकर बंगाल से संविधान सभा के चुनाव में चुने जाएं। डॉ. अंबेडकर को जिन क्षेत्रों ने वोट दिया था, जैसे कि बारिसाल, जेसोर-खुलना और फरीदपुर- वे मुस्लिम बहुल क्षेत्र न होने के बावजूद, कांग्रेस ने इन्हें पाकिस्तान जाने की अनुमति दे दी, जिससे बाबासाहेब एक बार फिर संविधान सभा से बाहर हो गए। हिंदू महासभा के नेता और नेहरू के मुखर आलोचक, श्री एम. आर. जयकर ने पुणे से अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया ताकि डॉ. अंबेडकर को संविधान सभा के लिए चुना जा सके।

नेताप्रतिपक्ष ने कहा कि 1952 के लोकसभा चुनाव में, कांग्रेस नेता श्री एस. के. पाटिल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सीधी निगरानी में कम्युनिस्ट पार्टी के श्रीपाद डी. डांगे के साथ मिलकर डॉ. आंबेडकर को हराने की योजना बनाई। इसके लिए अपेक्षाकृत कम चर्चित उम्मीदवार नारायणर एस. काजरोलकर को मैदान में उतारा गया। माननीय भारत रत्न बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने यह आरोप लगाते हुए एक याचिका दायर की कि कुल 74,333 मतपत्रों को अस्वीकार कर गिनती से बाहर कर दिया गया, जिससे कांग्रेस द्वारा उनके विरुद्ध रची गई रणनीति उजागर हुई।
भंडारा लोकसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर डॉ. भीमराव आंबेडकर को संसद से बाहर रखने का प्रयास दोहराया और नारायणर एस. काजरोलकर को दोबारा उनके खिलाफ प्रत्याशी बनाया। स्वयं प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. आंबेडकर के विरुद्ध चुनाव प्रचार किया, जिससे उनकी पराजय को सुनिश्चित किया जा सके। एडविना माउंटबेटन को लिखे एक पत्र में पंडित नेहरू ने 1952 के चुनावों में डॉ. आंबेडकर को हराने की आवश्यकता का उल्लेख किया था, जो कांग्रेस द्वारा उनके प्रति अपनाए गए विरोध के भाव को और अधिक स्पष्ट करता है।

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