हिमाचल में दवाई के सर्वाधिक सैंपल फेल, दवाई कंपनियों पर कार्यवाही करने में सरकार ओर ड्रग कंट्रोलर नाकाम

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शिमला, सुरेन्द्र राणा; हिमाचल प्रदेश में दवाई के सैंपल बार-बार फेल हो रहे हैं बावजूद इसके इन दवा उद्योगों पर कड़ी कार्यवाही नहीं हो रही है। दवा के सैंपल फेल होने पर कंपनियों को नोटिस थमा दिए जाते हैं लेकिन यह कंपनीया दोबारा से दवा बनाना शुरू कर देती है। साल 2019 से जून 2024 तक कैंसर, खून, हार्ट और एंटीबायोटिक से जुड़ी दवाओं के 795 सैंपल फेल हुए हैं। चिंताजनक स्थिति यह है कि जब तक ड्रग विभाग सैंपल लेता है, जांच रिपोर्ट आती है, तब तक लाखों लोग दवाएं खा चुके होते हैं।

विभाग ने कार्रवाई के नाम पर सिर्फ 12 फीसदी केस ही फाइल किए हैं। इनमें भी नाममात्र के लाइसेंस निलंबित किए गए। नियमों में सख्ती नहीं होने और अधिकारियों की लापरवाही से आरएमएससीएल के जरिए सप्लाई होने वाली दवाओं के सैंपल फेल हुए। इसमें सबसे अधिक दवाएं बद्दी में बनी हैं।

दिल-खून से जुड़ी दवाओं के सैंपल सबसे अधिक फेल हुए हैं। पेन किलर, एंटीबायोटिक, स्टेराइड, एंटी एमेटिक, हॉर्मोनल, कैंसर, लंग्स सहित दवाओं के सैंपल भी खरे नहीं उतरे।

सैंपल लेने से रिपोर्ट तक आने में करीब एक महीने लगते हैं। ऐसे में खराब दवाएं ड्रग वेयर हाउस और अस्पताल से लेकर मरीजों तक पहुंच चुकी होती हैं। एक बैच में कम से कम एक लाख गोलियां होती हैं।

आरएमएससीएल सभी दवाओं की टेस्टिंग कराता है। पास होने पर ही अस्पतालों में भेजी जाती हैं। औषधि भंडारों और अस्पतालों से नमूने औषधि नियंत्रण अधिकारी लेते हैं। इनकी रिपोर्ट आरएमएससीएल को भी आती है। रिपोर्ट में औषधि अमानक है तो उसके उपयोग को रोक दिया जाता है और स्टॉक रिजेक्ट कर दिया जाता है। फर्म के विरुद्ध निविदा शर्तों के अनुरूप डिबारिंग और वित्तीय कार्यवाही की जाती है। औषधि नियंत्रण विभाग कानूनी कार्रवाई करता है।

हाल ही में एक पड़ताल में आया कि सबसे अधिक 338 (42%) सैंपल हिमाचल प्रदेश और 134 सैंपल उत्तराखंड में बनी दवाओं के फेल हुए हैं। राजस्थान के 91, गुजरात के 51, दिल्ली-एनसीआर के 27 सैंपल फेल हुए हैं। सिक्किम, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, महाराष्ट्र, कनार्टक, जम्मू–कश्मीर सहित अन्य राज्यों के 154 सैंपल फेल हुए हैं।

हर महीने सैंपल फेल होने के बावजूद विभाग सख्ती नहीं कर रहा है। अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि साढ़े पांच साल में 12 फीसदी मामलों में केस फाइल किए गए। कुछ लाइसेंस 90 दिन के लिए सस्पेंड हुए। इनमें डिस्ट्रिब्यूटर्स लाइसेंस भी शामिल हैं।

ऐसे में ऐसी कंपनियों पर नकेल कसना जरूरी हो जाता है जो बार-बार ऐसी दावों का निर्माण करती है जिनके सैंपल सेंपल फेल हो जाते हैं। लोगों की जान के साथ खिलवाड़ ना हो ऐसे में ऐसी दवा कंपनियों पर कार्यवाही जरूरी हो जाती है। हिमाचल प्रदेश का बद्दी मेडिसन हब के रूप में जाना जाता है। ड्रग नियंत्रक सहित ऐसे अफसर नियुक्त किए जाने चाहिए जो कंपनियों के इशारे पर काम न करें।

हिमाचल प्रदेश के ड्रग कंट्रोलर की स्थाई नियुक्ति जल्द होनी चाहिए ताकि ऐसे दवा उद्योगों पर लगाम लगाई जा सके।

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