पंजाब, सुरेंद्र राणा: हरियाणा चुनाव में तमाम एग्जिट पोल और भविष्यवाणियों को फेल करते हुए भाजपा ने जीत की हैट्रिक लगाई है। आइए जानते हैं की क्या वजह रही की लोगों ने हरियाणा में सत्ता में आने के सपने देख रही कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखा।देश की राजनीति में पहली बार जीत की हैट्रिक लगाने में भाजपा सरकार की नीतियों और संगठन की रणनीति की अहम भूमिका रही है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने 56 दिन के कार्यकाल में 126 फैसले लिए। यह फैसले किसानों, पिछड़ों, दलितों और युवाओं से जुड़े थे। सैनी ने इन फैसलों को कैबिनेट से पास करवाकर तत्काल लागू करवाया, जिसका फायदा इन वर्ग को मिला। संगठन के माइक्रो मैनेजमेंट ने भी बखूबी अपना काम किया।
भाजपा का शीर्ष नेतृत्व जब चुनाव प्रचार में जुटा था, तो उसके प्रभारी बूथ मैनेजमेंट में जुटे रहे। अंतिम समय में बूथ पदाधिकारी मतदाताओं को पोलिंग स्टेशन तक लाने में कामयाब रहा। दूसरी ओर, जिन लोगों के खिलाफ जनता में नाराजगी थी, भाजपा ने उन्हें चुनाव के दौरान साइड लाइन में रखा।
भाजपा ने ऐसे बदल दिया माहौल
गैर जाट वोटों को लामबंद करना :
कांग्रेस जाट, दलित और मुस्लिम वर्ग को लामबंद कर चुनाव लड़ती रही। वहीं, भाजपा गैर जाट वोटों को एकजुट करने में कामयाब रही। उसे दलितों का वोट भी खूब मिला। भाजपा ने टिकट वितरण में सोशल इंजीनियरिंग का ध्यान रखा और सामान्य वर्ग के 34 और ओबीसी के 22 उम्मीदवारों को टिकट दिया। सामान्य वर्ग में पंजाबी, ब्राह्मण, राजपूत, बनिया और रोड़ जाति का विशेष ध्यान रखा। इनमें से अधिकतर उम्मीदवार जीत कर आए हैं। कांग्रेस राज में दलितों पर हुए अत्याचारों को मुद्दा बनाकर कांग्रेस के खिलाफ नैरेटिव सेट करने में कामयाब रहे।
मनोहर को हटाकर नायब सैनी को लाना
मार्च में ओबीसी वर्ग के नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री और ब्राह्मण समुदाय के मोहन लाल बड़ौली को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करने का फैसला कारगर साबित हुआ। नायब सैनी दस साल की सत्ता विरोधी लहर और लोगों को नाराजगी कम करने में कामयाब रहे। उनका लोगों से लगातार मिलना और सीएम आवास को लोगों के लिए खोलना भी काम कर गया। 56 दिन में उन्होंने 100 से ज्यादा फैसले लिए। इनमें अधिकतर फैसले किसानों, ओबीसी और दलित वर्ग से जुड़े थे। इनमें कई योजनाएं ऐसी थी, जिससे जनता को जल्द और सीधा लाभ मिला।
मुफ्त की घोषणाओं से परहेज नहीं :
सत्ता की हैट्रिक के लिए भाजपा ने राजनीतिक परिवारों के 4 उम्मीदवार उतारे। पहली बार मुफ्त योजनाओं की भी घोषणा की। महिलाओं के खाते में हर महीने 2,100 रुपये देने और कॉलेज जाने वाली ग्रामीण छात्राओं को मुफ्त स्कूटी की घोषणा की।
मतदान से एक हफ्ते पहले धुआंधार प्रचार : मतदान से ठीक पहले भाजपा ने अपने स्टार प्रचारकों की पूरी टीम उतार दी। अंतिम समय तक भाजपा के फायरब्रांड नेता अमित शाह और योगी आदित्यनाथ ने पूरे प्रदेश में घूम-घूम कर रैलियां की। शाह ने पूरे चुनाव में दस और योगी ने 14 रैलियां की। पीएम मोदी ने चार रैलियां कीं। भाजपा के 22 स्टार प्रचारकों ने पूरे राज्य में 155 से ज्यादा रैलियां, जनसभाएं और रोड शो किए।
दूसरे प्रदेश के विधायकों ने छोटी बैठकें कीं : हरियाणा भाजपा का पूरा संगठन जब प्रचार, बूथ मैनेजमेंट में लगा था, तो यूपी, हिमाचल और राजस्थान के विधायकों को छोटी-छोटी बैठकें करने का जिम्मा सौंपा गया।
मनोहर को रखा दूर और विनेश पर चुप्पी : मनोहर लाल के खिलाफ व्यक्तिगत सत्ता विरोधी लहर थी, इसलिए रणनीति के तहत चुनाव प्रचार से अलग रखा। वह अपनी अलग ही सभाएं करते रहे। किसी भी नेता ने विनेश फोगाट के बारे में कोई बयान नहीं दिया, जबकि विनेश लगातार पीएम मोदी के खिलाफ बयान दे रही थीं।
सरकार की इन नीतियों ने दूर की नाराजगी
बिना पर्ची-खर्ची के नौकरी : भाजपा ने दस साल में 1.40 लाख युवाओं को बिना पर्ची-खर्ची के सरकारी नौकरियां देने का जमकर प्रचार किया और युवाओं को संदेश देने में कामयाब रही कि उसकी सरकार में योग्यता के आधार पर नौकरी मिलेगी। चुनाव के दौरान भी नौकरियां देने की प्रक्रिया जारी रखी।
24 फसलों पर एमएसपी : चुनाव से ठीक पहले 24 फसलों पर एमएसपी लागू कर किसानों की नाराजगी दूर की। की। बारिश की कमी से सूखी फसल को लेकर भी पहली बार मुआवजा जारी किया।
एससी की वंचित जातियों को आरक्षण : सरकार ने ओबीसी की क्रीमी लेयर सीमा छह से आठ लाख की। एससी के लिए आरक्षित 20% कोटा का आधा हिस्सा इस वर्ग के वंचित के उम्मीदवारों के लिए अलग रखने का फैसला किया। इसमें वाल्मीकि, धानक, खटीक जैसी 36 जातियां शामिल हैं।
इसी स्ट्रेटजी पर काम करने से भाजपा एक बार फिर सत्ता में काबिज हो पाई है।
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