शिमला, सुरेंद्र राणा: स्टाफ की कमी को दूर करने और खर्च घटाने के लिए सेवानिवृत्त अधिकारियों और कर्मचारियों की सेवाएं लेने के मामले में सरकार ने नियम और शर्तें तय की हैं। इस संबंध में प्रधान सचिव वित्त देवेश कुमार ने पुनर्नियुक्ति के लिए नियमों और शर्तों को तय कर आदेश जारी किया है। आदेश के अनुसार सेवानिवृत्त कर्मचारियों को उन विशिष्ट पदों पर फिर से नियुक्त किया जा सकता है, जहां नियमित रिक्तियां उपलब्ध नहीं हैं। इन पदों के लिए पारिश्रमिक श्रेणी एक से श्रेणी तीन तक सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए अंतिम प्राप्त मूल वेतन का 40 फीसदी देय होगा।

इनमें चतुर्थ श्रेणी के मल्टी टास्क वर्कर, तृतीय श्रेणी के कार्यालय सहायक और प्रथम व द्वितीय श्रेणी वाले वर्क सुपरवाइजर जैसे पद भी शामिल हैं। डॉक्टर, इंजीनियर और सलाहकार जैसी विशेष श्रेणियों के लिए 50 फीसदी तक सीमित होगा। इस तरह की पुनर्नियुक्ति का कार्यकाल सरकार की ओर से निर्धारित किया जाएगा और एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। हालांकि, यदि सेवाओं की आवश्यकता नहीं है तो सरकार को अवधि समाप्त होने से पहले अनुबंध समाप्त करने का अधिकार सुरक्षित है। निर्धारित पारिश्रमिक पर कोई महंगाई भत्ता देय नहीं होगा। ये आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए लागू मानदंडों के अनुसार टीए, डीए और छुट्टी के हकदार होंगे।

कोई चिकित्सा सुविधा प्रदान नहीं की जाएगी, क्योंकि सेवानिवृत्त व्यक्ति पहले से ही ऐसी योजनाओं के अंतर्गत आते हैं। यदि सेवानिवृत्त व्यक्ति के पास निरंतर सरकारी आवास है तो उसे बनाए रखा जा सकता है। सरकार ने इस बात पर जोर दिया है कि इन पुनर्नियोजित व्यक्तियों से संबंधित सभी व्यय आउटसोर्सिंग खाते के शीर्ष के अंतर्गत वहन किए जाने चाहिए। प्रशासनिक विभागों को ऐसे हर प्रस्ताव के लिए वित्त विभाग से पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होगी। यदि पुनर्नियोजित व्यक्ति का प्रदर्शन या आचरण असंतोषजनक पाया जाता है तो सरकार अनुबंध को समाप्त कर सकती है। सेवानिवृत्त व्यक्तियों को पुनर्नियोजित व्यक्ति की शर्तों और नियमों से सहमत होने वाला एक घोषणा पत्र प्रस्तुत करना होगा।

सेवानिवृत्तों को पहले दिया जाता था भारी-भरकम वेतन
सेवानिवृत्तों को एक्सटेंशन देने के बाद विभिन्न विभागों, निगमों-बोर्डों में एकरूपता नहीं थी। कई विभाग और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम अपने-अपने हिसाब से सेवानिवृत्तों को प्रतिनियुक्तियां देते आ रहे थे। बहुत की नियुक्तियों के मामले में अंतिम वेतन में से पेंशन घटाकर वेतन दिया जाता था। यानी सेवानिवृत्तों को पहले भारी-भरकम वेतन दिया जाता था। इससे सरकारी कोष पर भार पड़ रहा था। इसके अलावा सरकार के पास सेवानिवृत्ति के बाद एक्सटेंशन देने के मामले भी बड़ी संख्या में आ रहे थे। इसी के मद्देनजर यह निर्णय लिया गया है। एक तो इससे खर्चा घटेगा और दूसरा यह कि सेवानिव़ृत्ति के बाद भी सरकारी सेवाओं में बने रहने का मोह अधिकारियों और कर्मचारियों में कम होगा।

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