शिमला, सुरेंद्र राणा: हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में इस साल से राष्ट्रीय शिक्षा नीति को कालेजों में लागू करने की परमिशन नहीं मिल पाई। इसका असर यह होगा कि अन्य राज्य की तुलना में यूजी-पीजी के छात्र एक साल पीछे रह जाएंगे। हालांकि एचपीयू की समन्यवक समिति ने इसे लागू करने के लिए तैयारियां पूरी कर दी थीं, लेकिन इस साल से इसे लागू करने के लिए परमिशन ही नहीं मिल पाई। ऐसे में सभी तरह की तैयारियां भी धरी की धरी रह गईं।
।इसका असर यह हुआ है कि कालेजों में पहले वर्ष से ईयर सिस्टम के बजाय सेमेस्टर प्रणाली लागू होनी थी। इस सिस्टम से पढ़ाई करने वाले छात्रों के पास मल्टीपल एंट्री और एग्जिट प्लान का ऑप्शन होता।
नई शिक्षा नीति में यह प्रावधान है कि एक बार कालेज में एडमिशन के बाद पढ़ाई पूरी करने पर डिप्लोमा, दूसरे साल में सर्टिफिकेट और तीसरे साल में डिग्री दी जाएगी। यदि बीच में किसी भी कारण से पढ़ाई छूट जाए, तो पढ़ा हुआ सिलेबस और समय खराब न हो, लेकिन इस साल से यह व्यवस्था लागू ही नहीं हो पाई। साथ ही दूसरी व्यवस्थाा ड्यूल डिग्री सिस्टम को लागू करने की थी। यानि चार साल की पढ़ाई में एक साथ दो डिग्री का प्रावधान भी इसमें था। तीसरा सिस्टम एबीसी यानि अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट भी इसमें लागू होना था। जिसमें जितने समय तक छात्र संस्थान में रहते, उतने समय तक डिजी लॉकर में उसका रिकार्ड रहता। अब छात्रों को इसके लिए अगले साल का इंतजार करना होगा।
100 करोड़ की ग्रांट में एनईपी भी शामिल
हाल ही में एचपीयू को केंद्र सरकार से मेरु प्रोजेक्ट के तहत सौ करोड़ की ग्रांट मिली है। एचपीयू की ओर से केंद्र के समक्ष यह प्रोपोजल रखा गया था कि हिमाचल के कालेजों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू कर दिया गया है। उसके बाद इसके लिए भी केंद्र ने बजट जारी किया है। ऐसे में इस साल यह बजट राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर खर्च ही नहीं हो सकेगा।