प्रार्थी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर इस प्राथमिकी और इससे उपजी कार्यवाही को निरस्त करने की गुहार लगाई थी। कोर्ट ने मामले का निपटारा करते हुए कहा कि यदि याचिकाकर्ता ने आतंकी की मौत के बाद जनता को प्रशासन या अन्य पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विरोध दर्ज कराने के लिए उकसाया होता या उसने दूसरों से आंदोलन में शामिल होने की अपील की होती, तो यह कहा जा सकता था कि उसने आईपीसी की धारा 153 (बी) के तहत अपराध किया है। यदि याचिकाकर्ता द्वारा उसके फेसबुक अकाउंट के माध्यम से दी गई टिप्पणियों को संपूर्ण रूप से पढ़ा जाए, तो उसने उक्त आतंकवादी की खबर सुनने के बाद ही दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की थी। दिवंगत आत्मा के लिए प्रार्थना करते समय उसने समाज के सदस्यों को या विशेष रूप से किसी भी धर्म के सदस्य को घरों से बाहर आकर प्रशासन की कार्रवाई का विरोध करने के लिए नहीं उकसाया था। उसने तो केवल दिवंगत आत्मा के लिए प्रार्थना की थी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यद्यपि यह कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता ने फेसबुक अकाउंट के माध्यम से टिप्पणी करके आतंकवादी के कृत्यों का महिमामंडन करने का प्रयास किया, लेकिन ऐसा करना को आईपीसी की धारा 153(बी) के तहत कोई अपराध/अपराध नहीं कहा जा सकता है।