शिमला, सुरेंद्र राणा: प्रदेश हाई कोर्ट ने निर्दलीय विधायकों के इस्तीफों को मंजूरी न देने से जुड़े मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। तीन निर्दलीय विधायकों ने उनके इस्तीफे मंजूर न करने के खिलाफ याचिका दायर की है। मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ के समक्ष इस मामले पर सुनवाई हुई।
इस मामले में सभी पक्षकारों की ओर से वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए बहस पूरी की गई। कोर्ट ने शिमला से कांग्रेस विधायक हरीश जनार्था द्वारा इस मामले में हस्तक्षेप करने की इजाजत से जुड़े आवेदन को भी खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में निर्दलीय विधायकों और स्पीकर की ओर से बहस सुनने के पश्चात हस्तक्षेप की मांग करने वाले प्रार्थी को सुनने की कोई आवश्यकता नहीं है। हालांकि कोर्ट ने इस आवेदन को खारिज करने के विस्तृत कारण अलग से मुख्य याचिका के फैसले के साथ देने के आदेश पारित किए। निर्दलीय विधायकों की ओर से कोर्ट को बताया गया कि इस मामले में उन्होंने खुद जाकर स्पीकर के समक्ष इस्तीफे दिए राज्यपाल को इस्तीफे की प्रतिलिपियां सौंपी, विधानसभा के बाहर इस्तीफे मंजूर न करने को लेकर धरने दिए और हाई कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया, तो उन पर दबाव में आकर इस्तीफे देने का प्रश्न उठाना किसी भी तरह से तार्किक नहीं लगता और इसलिए इससे बढक़र उनकी स्वतंत्र इच्छा से बड़ा क्या सबूत हो सकता है।
उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट को बताया कि इस्तीफे के बाद बीजेपी की सदस्यता ज्वाइन करने पर उन्हें स्पीकर ने विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराने का नोटिस जारी किया है, जबकि वास्तविकता यह है कि वे निर्दलीय विधायक होने के नाते किसी भी पार्टी को ज्वाइन करने की स्वतंत्रता रखते हैं। वे किसी दल के संविधान से बंधे नहीं हैं, इसलिए उन पर अयोग्यता का मामला भी नहीं बनता।
उनका कहना था कि कानूनन उन्हें इस्तीफे का कारण बताने को बाध्य नहीं किया जा सकता। इतना ही नहीं किसी भी विधायक को कानून के तहत इस्तीफे का कारण देने की मनाही है। निर्दलीय विधायकों की ओर से उन्हें स्पीकर द्वारा जारी किए कारण बताओ नोटिस का हवाला देते हुए कहा गया कि स्पीकर ने भी उनके इस्तीफे की बात स्वीकार की है। फिर भी उनके इस्तीफे मंजूर नहीं किए जा रहे हैं। प्रार्थियों का कहना है कि उनके इस्तीफे मंजूर न करने की दुर्भावना स्पीकर के जवाब से जाहिर है जिसके तहत उन पर दबाव में आकर राज्यसभा चुनाव के दौरान बीजेपी प्रत्याशी के पक्ष में वोट डालने के गलत आरोप लगाए गए हैं।
प्रार्थियों का कहना था कि यदि स्पीकर अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए उनके इस्तीफे मंजूर नहीं करता तो हाई कोर्ट के पास यह शक्तियां हैं कि वह जरूरी आदेश पारित कर उनके इस्तीफों को मंजूरी दें। स्पीकर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट को बताया गया कि अदालत स्पीकर को उन्हें संवैधानिक दायित्व का निर्वहन करने से नहीं रोक सकती, जिसके तहत स्पीकर को इस्तीफे के कारणों की जांच का अधिकार दिया गया है। कोर्ट के पास स्पीकर की कार्यवाही की न्यायिक विवेचना का अधिकार नहीं है। निर्दलीय विधायकों पर दबाव को दर्शाते हुए कहा गया कि राज्यसभा चुनाव के बाद ये निर्दलीय विधायक सीआरपीएफ की सुरक्षा में प्रदेश से बाहर रहे और इसी सुरक्षा में आकर अपने इस्तीफे सौंपे। विभिन्न उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला देते हुए कहा गया कि निर्दलीय विधायकों को भी दल बदल कानून के तहत अयोग्य ठहराने की शक्ति स्पीकर के पास है, इसलिए इन विधायकों को इस संबंध में कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं।
मामले के अनुसार देहरा से निर्दलीय विधायक होशियार सिंह चंब्याल, नालागढ़ से निर्दलीय विधायक केएल ठाकुर और हमीरपुर से निर्दलीय विधायक आशीष शर्मा ने विधानसभा की सदस्यता से 22 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष तथा सचिव को अपने इस्तीफे सौंपे थे। इस्तीफों की एक-एक प्रति राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल को भी दी थी। राज्यपाल ने भी इस्तीफों की प्रतियां विधानसभा अध्यक्ष को भेज दी थीं। प्रार्थियों का आरोप है कि विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने इन्हें मंजूरी नहीं दी और इस्तीफे के कारण बताने के लिए 10 अप्रैल तक स्पष्टीकरण देने को कहा। इन विधायकों ने कारण बताओ नोटिस को खारिज कर इस्तीफे मंजूर करने की गुहार लगाई है। निर्दलीय विधायकों का कहना है कि जब उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को व्यक्तिगत तौर पर मिलकर इस्तीफे दिए गए तो उनके इस्तीफे मंजूर की बजाए उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी करना असवैंधानिक है।
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