शिमला, सुरेंद्र राणा: केंद्र व प्रदेश सरकार की मजदूर व किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ सीटू का तीन दिवसीय महापड़ाव आज से प्रदेश सचिवालय के बाहर शुरू हो गया है। सीटू व हिमाचल किसान सभा के बैनर तले हिमाचल प्रदेश के मनरेगा, निर्माण, बीआरओ, आंगनबाड़ी, मिड डे मील, उद्योगों, आउटसोर्स, ठेका कर्मी, 25 से 27 नवम्बर तक तीन दिन का महापड़ाव करेंगे। सीटू ने सरकार को चेताया है कि मजदूर व किसान 2024 में मोदी सरकार को सता से उखाड़ फेंकेंगे।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार किसान मजदूर फैसले लेती आ रही है। तीन किसान विरोधी कानून किसानों के दबाव के बाद वापिस लिए गए। महापड़ाव के द्वारा मजदूरों का न्यूनतम वेतन 26 हज़ार रुपये घोषित करने, मजदूर विरोधी चार लेबर कोडों को रद्द करने, आंगनबाड़ी, आशा व मिड डे मील योजना कर्मियों को नियमित करने, किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने, स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों को लागू करने, शहरी क्षेत्रों में विस्तार के साथ ही मनरेगा में 375 रुपये प्रति दिन की मजदूरी पर 200 दिन कार्य दिवस प्रदान करने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मनरेगा, निर्माण तथा बीआरओ मजदूरों का श्रमिक कल्याण बोर्ड में पंजीकरण व आर्थिक लाभ बहाल करने, आउटसोर्स कर्मियों के लिए नीति बनाने की मांग करता है। उन्होंने कहा है कि केन्द्र की मोदी सरकार की नवउदारवादी व पूंजीपति परस्त नीतियों के कारण बेरोजगारी, गरीबी, असमानता व रोजी रोटी का संकट बढ़ रहा है। बेरोजगारी व महंगाई से गरीबी व भुखमरी बढ़ रही है।
उन्होंने कहा कि न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये प्रति माह और सभी श्रमिकों को पेंशन सुनिश्चित करने मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताओं और बिजली संशोधन विधेयक को निरस्त करने आउटसोर्स प्रणाली पर रोक लगाकर इन सभी मजदूरों को नियमित करने, नौकरी से बाहर किये गए सैंकड़ों कोविड कर्मियों को बहाल करने की मांग की जा रही है।
शहरी क्षेत्रों में विस्तार के साथ मनरेगा में 375 रुपये प्रति दिन की मजदूरी पर 200 दिन कार्य दिवस प्रदान करने, मनरेगा, निर्माण तथा बीआरओ मजदूरों का श्रमिक कल्याण बोर्ड में पंजीकरण व आर्थिक लाभ बहाल करने की मांग की मांग को अनसुना किया गया है। यह सरकार मजदूर किसान विरोधी है जिसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ेगा।
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