दिल्ली: नारी वंदन शक्ति किस स्वरूप में और कब से लागू होगी इसको लेकर अभी तस्वीर पूरी तरह से साफ नहीं है, लेकिन राजनीतिक हलकों में कहा यही जा रहा है कि तस्वीर के साफ होने के बाद एक बात तो स्पष्ट है कि कई बड़े-बड़े नेताओं की सियासी जमीन उनके हिस्से से खिसक सकती है। अब इसके लिए सियासी दलों से लेकर बड़े-बड़े राजनेता जिनका प्रभाव अपने क्षेत्र में मजबूती के साथ बना हुआ है वह भी सियासी गुणा गणित में लग गए हैं कि उनकी सीट पर क्या समीकरण बनने वाले हैं।
चर्चा इस बात की भी हो रही है कि कहीं नारी वंदन शक्ति से हुए सीट परिवर्तन के आरक्षण में पंचायत चुनावों जैसा हाल न होने लगे। यानी कि परिवार में ही महिला और पुरुष सीटों की अदला बदली होने लगे। सियासी जानकारों का मानना है कि इसको लागू कब किया जाएगा यह बाद की बात है लेकिन देश के अलग-अलग राज्यों के सियासी मैदान में अपनी अपनी सीटों की गुणा गणित तो होने ही लगी है।
राजनीतिक जानकार हिमांशु शितोले कहते हैं कि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इस नारी वंदन शक्ति अधिनियम के पास होने के बाद इसको लागू कब से किया जाएगा। चर्चा यही हो रही है कि नई जनगणना के बाद ही इसको लागू किया जाएगा। वह कहते हैं अगर जनगणना के बाद इसके आधार पर आरक्षण लागू किया जाएगा तो महत्वपूर्ण बात यह जानने की है कि आखिर जनगणना कब होगी। यही वजह है कि राजनीतिक दलों में खासतौर से जो क्षेत्रीय दल हैं इस अधिनियम के तहत होने वाले आरक्षण को लेकर एक उत्सुकता भी बनी है और अपनी सियासी जमीन बचाने को लेकर आगे की रणनीति पर बातचीत भी शुरू हो गई है।
उत्तर प्रदेश में राजनीतिक विश्लेषक जटाशंकर सिंह कहते हैं कि यह बात तो स्पष्ट है कि जब तक आरक्षण की तस्वीर साफ नहीं होगी तब तक यह कहना मुश्किल होगा कि किसकी सीट बचेगी और किसकी सीट जाएगी। यह भी जानना महत्वपूर्ण है कि यह व्यवस्था लागू कब से होगी। उनका कहना है कि पंचायत चुनावों में तो यह व्यवस्था लागू है, लेकिन जैसे ही इस व्यवस्था को विधानसभाओं के स्तर पर लागू किया जाएगा उसमें उन बड़े-बड़े नेताओं की सियासी जमीन के हिस्से खिसकने तय माने जा रहे हैं जो की लगातार चुनाव जीतते आए हैं या फिर निर्दलीय लंबे समय से चुनाव जीत रहे हैं। हालांकि उनका कहना है जब तक पूरी तरीके से इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं मिल जाती तब तक स्पष्ट रूप से कह पाना कुछ भी संभव नहीं है।
दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता प्रोफेसर आलोक सिंह कहते हैं कि सियासत में जब इस तरीके के बड़े फैसले आते हैं तो उसका असर बहुत व्यापक होता है। अब महिला आरक्षण बिल को लेकर सियासी गलियारों में जो कयास लगाए जा रहे हैं वह वाजिब भी हैं। उनका मानना है कि इस तरीके के बड़े व्यापक बदलाव वाले बिल का सियासी तौर पर असर जबरदस्त तरीके से पड़ता है। वह कहते हैं कि उनके महकमें ने एक प्रोजेक्ट पर ट्रिपल तलाक के बाद उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, रामपुर, आजमगढ़, सहारनपुर और बरेली की नौ विधानसभाओं के 47 मुस्मिल्म बाहुल्य बूथों पर सर्वे किया था। तो पाया कि पिछले चुनाव की तुलना में ट्रिपल तलाक के फैसले के बाद सत्ता पक्ष को उन बूथों पर ज्यादा वोट मिला जहां पर पिछले चुनाव में मुस्लिम बहुल इलाकों में उनके प्रत्याशी हार गए थे।
उनका मानना है कि ऐसे मुद्दे सियासी रूप से बड़ा असर डालते हैं। इसलिए अगर सियासी नजरिए से कोई भी राजनेता या दल अपनी राजनीतिक जमीन पर गुणा गणित लगाकर सियासी समीकरण समझने की तैयारी कर रहा है तो स्वाभाविक भी है। जब तक आरक्षण की प्रक्रिया नहीं शुरू होगी तब तक यह चलता रहेगा। प्रोफेसर आलोक कहते हैं कि राजनीति में फैसला आना या कोई कानून बनाना जितना महत्वपूर्ण होता है उससे ज्यादा महत्वपूर्ण उसका प्रचार और प्रसार करना होता है। इसलिए सियासी नजरिया से सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के पास अपना मजबूत है। जिसके आधार पर वह जनता में एक परसेप्शन बना सकते हैं।
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