चंडीगढ़: दुष्कर्म की याद दिलाने वाले बच्चे को समाज के बहिष्कार के डर से मां ने अपने साथ रखने से इंकार कर दिया। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट पहुंची मां ने गर्भ गिराने की अनुमति मांगी पर पीजीआई चंडीगढ़ ने जांच के बाद समय ज्यादा होने के चलते गर्भ गिराने की सलाह नहीं दी। ऐसे में मामला फिर हाईकोर्ट पहुंचा जहां बच्चा साथ न रखने की मां की दलील पर कोर्ट ने राज्य सरकार को बच्चे की जिम्मेदारी लेने के निर्देश दिए हैं। जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने फैसले में कहा कि स्थानीय बाल कल्याण समिति बच्चे के जन्म पर उसे अपने पास रख सकती है।
मां की पहचान को गोपनीय रखते हुए इस संबंध में जरूरी कागजी कार्रवाई को पूरा कर सकती है। रेवाड़ी की महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा एक व्यक्ति ने उसके साथ दुष्कर्म किया। एफआईआर दर्ज हो चुकी है व मामला कोर्ट में विचाराधीन है। दुष्कर्म से पैदा होने वाले बच्चे को वह जन्म नहीं देना चाहती लिहाजा गर्भ गिराने की अनुमति दी जाए। हाईकोर्ट ने इस पर पीजीआई चंडीगढ़ के मेडिकल बोर्ड को महिला की जांच कर रिपोर्ट देने के निर्देश दिए थे। पीजीआई ने कहा,गर्भ 26 सप्ताह से ज्यादा समय का है लिहाजा इसे गिराने की सलाह नहीं दी जा सकती।
महिला के आग्रह पर हाईकोर्ट ने मेडिकल बोर्ड को मानवीय संवेदनाओं से जुड़ा मामला होने का हवाला देते हुए फिर से विचार करने के निर्देश दिए लेकिन पीजीआई ने गर्भ गिराने की अनुमति नहीं दी। महिला बोली, बच्चे को जन्म देने पर उसे साथ नहीं रखना चाहती।
पीड़िता बोली- बच्चा दुष्कर्म की याद दिलाएगा
महिला ने याचिका में कहा कि बच्चा उसके साथ हुए उत्पीड़न की याद उसे जीवन भर दिलाएगा। इसके अलावा यह उसके सामाजिक बहिष्कार का कारण भी बन सकता है। बच्चे के कारण उसके भविष्य की संभावनाओं पर भी बुरा असर पड़ेगा। ऐसे में वह बच्चे को नहीं रखना चाहती।
कोर्ट बोला- ऐसा नहीं होने देंगे,मां की पहचान सार्वजनिक न हो
हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि इस सारे मामले में मां की पहचान को कहीं भी सार्वजनिक न किया जाए। अस्पताल में भर्ती होने और इलाज के दौरान याचिकाकर्ता की पहचान को उजागर न किया जाए। यही नहीं जन्म के बाद बच्चे को बाल कल्याण समिति को सौंपते समय कागजी कार्रवाई के दौरान भी मां की पहचान को पूरी तरह से गोपनीय रखा जाए।
स्टेट जिम्मेदारी निभाए
हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि कानून अधिकार देता है कि वह(महिला) गर्भधारण चाहती है या नहीं। पर मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर गर्भ गिराने का प्रयास समय से पहले प्रसव का कारण बन सकता है व मां के जीवन को भी संकट में डाल सकता है। ऐसे में राज्य सरकार जिम्मेदारी निभाकर पैदा होने पर बच्चे की कस्टडी ले व मां व बच्चे को चिकित्सा सुविधा दे।
महिला को ये अधिकार कि वह गर्भधारण करे या नहीं पर मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर ये उसकी जान के लिए खतरा हो सकता है…ऐसे में राज्य सरकार बच्चे की कस्टडी ले व महिला को भी सहूलियतें दें
कानून में प्रावधान वर्ष 1971 में पारित कानून के मुताबिक कानूनी तौर पर गर्भपात केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता था। जैसे- जब महिला की जान को खतरा हो, महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो, बलात्कार के कारण गर्भधारण हुआ हो, पैदा होने वाले बच्चे का गर्भ में उचित विकास न हुआ हो व उसके विकलांग होने का डर हो। 12 से 20 सप्ताह के बीच के गर्भधारण के संदर्भ में इन सभी बातों का निर्धारण करने को दो डॉक्टरों की राय आवश्यक होती थी। वर्ष 2021 में 20 सप्ताह के समय को बढ़ाकर 24 सप्ताह का कर दिया गया।
पहले भी ऐसे मामले पहले ऐसे ही एक मामले में हाईकोर्ट ने पीजीआई की रिपोर्ट पर गर्भ गिराने की अनुमति दी थी। पीजीआई ने कहा था कि चिकित्सा जटिलताओं से बचने को तत्काल कार्रवाई की जरूरत है। कोर्ट ने मां को गर्भ गिराने की अनुमति दे पीजीआई को जरूरी सुविधा उपलब्ध कराने के आदेश दिए थे।
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