कल लगेगा साल का पहला सूर्य ग्रहण, सूर्य ग्रहण की नेगेटिव एनर्जी से कैसे बचा जाए, जानें इसके पौराणिक और वैज्ञानिक मान्यताएं

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धर्म: गुरुवार 20 अप्रैल 2023 को साल का पहला सूर्य ग्रहण लगेगा. यह ग्रहण मेष राशि और अश्विनी नक्षत्र में लगेगा. ज्योतिष की माने तो करीब 19 साल बाद मेष राशि में सूर्य ग्रहण लगेगा. धार्मिक दृष्टिकोण से सूर्य ग्रहण को अशुभ माना गया है. वहीं विज्ञान की नजर में ग्रहण लगने की घटना ऐसी होती है, जिससे वैज्ञानिकों को कुछ नया प्राप्त होता है. लिहाजा विज्ञान के लिए प्रयोग के लिए ग्रहण को महत्वपूर्ण माना जाता है.

सूर्य ग्रहण हो या चंद्र ग्रहण दोनों से ही पौराणिक और वैज्ञानिक मान्यताएं जुड़ी होती हैं. इसलिए धार्मिक और विज्ञान की दृष्टि से ग्रहण की व्याख्या भी अलग-अलग है. जानते हैं धार्मिक और वैज्ञानिक नजरिए से क्या है सूर्य ग्रहण?

विज्ञान के अनुसार पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करता है जबकि चंद्रमा पृथ्वी के चारो ओर घूमती है. पृथ्वी और चंद्रमा घूमते-घूमते एक समय पर ऐसे स्थान पर आ जाते हैं जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा तीनों एक सीधे रेखा में रहते हैं. जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाती है और वह सूर्य को ढ़क लेता है तो इसे सूर्य ग्रहण कहते हैं.

इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि, सूर्य सभी ग्रहों का केंद्र है. पृथ्वी और दूसरे ग्रह सूर्य के ही चारों ओर परिक्रमा करते हैं. वहीं चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है. पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में 365 दिन यानी एक साल का समय लगता है और चंद्रमा को एक चक्कर लगाने में 27 दिन का समय लगता है. चंद्रमा की परिक्रमा करते हुए कई बार सूर्य और पृथ्वी बीच में आ जाते हैं और सूर्य के प्रकाश को रोक देते हैं. इसे ही सूर्य ग्रहण कहा जाता है.

सूर्य ग्रहण का पौराणिक कारण

सूर्य या चंद्र ग्रहण लगने का कारण समुद्र मंथन से जुड़ी है. इसके अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत का पान करने के लिए देवताओं और दानवों के बीच विवाद हो गया. तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर पहले देवताओं को अमृत पान करा दिया. लेकिन देवताओं की पंक्ति में एक असुर ने भी बैठकर अमृत पान कर लिया. लेकिन सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया और विष्णु जी को इसके बारे में बता दिया.

तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उस दानव का सिर धड़ से अलग कर दिया. लेकिन अमृत पान कर लेने के कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई. इसी दानव के सिर वाला भाग राहू और धड़ वाला भाग केतू कहलाया. इस घटना के बाद सूर्य और चंद्रमा राहू केतु के शत्रु हो गए और राहू-केतु सूर्य और चंद्रमा को ग्रास करते हैं, जिसे ग्रहण कहा जाता है.

सूर्य ग्रहण से जुड़ी धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताएं

धार्मिक मान्यता है कि ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को नुकीली चीजों का प्रयोग नहीं करना चाहिए. लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार, नुकीली चीजों के प्रयोग से गर्भ में पल रहे शिशु पर कोई असर नहीं होता.

धार्मिक दृष्टिकोण से सूर्य ग्रहण लगने की घटना को अशुभ माना गया है. लेकिन विज्ञान के लिए सूर्य ग्रहण की घटना किसी नए खोज के लिए अवसर की तरह होती है.

धार्मिक मान्यता है कि ग्रहण के दौरान खाने-पीने की चीजों में तुलसी के पत्ते या कुश रखना चाहिए. इससे से खाने-पीने की चीजों पर ग्रहण का नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता.

सूर्य ग्रहण की नेगेटिव एनर्जी से बचने के उपाय

सूर्य ग्रहण के दौरान घर से बाहर नहीं निकलें. खासकर गर्भवती स्त्री को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए.

ग्रहण के दौरान अधिक से अधिक मंत्रों का जाप और देवी-देवताओं का स्मरण करें.

ग्रहण में पहले से पके हुए खाद्य-पदार्थों का सेवन बिल्कुल न करें.

सूर्य ग्रहण समाप्त होने के बाद स्नान जरूर करें.

सूर्य ग्रहण के दौरान पूजा, यज्ञ या आरती नहीं करने चाहिए.

खाने-पीने की चीजों पर ग्रहण लगने के पहले से ही तुलसी का पत्ता डाल दें. इससे ग्रहण का नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाता है.

 

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