कानून की पेचीदगियां और प्रशासन की लचर व्यवस्था से पीसता आम आदमी

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हमीरपुर, सुरेंद्र राणा:  कानून की पेचीदगियां और प्रशासन की लचर व्यवस्था के चलते न्यायालयों में लंबे खिंचते विवादों के चलते पिछले दिनों हमीरपुर जिला के सुजानपुर थाना के बीड बगेड़ा पंचायत के अंतर्गत 2 परिवार बरबाद हो गए। इसी व्यवस्था के चलते कई बार लोग क़ानूनी पेचीदगियों में खिंचते मामलों और समय पर न्याय न मिलने के कारण एक तरफ जहां बाहुबल होता है वो बाहुबल का प्रयोग करके भी इन पेचीदगियों का लाभ उठाने का प्रयास करते है वहीं बाहुबल के मामले में कमजोर पक्ष कई बार लगातार हो रहे बाहुबल के प्रयोग से या समय पर न्याय न मिलने के कारण भी अपने संयम पर नियंत्रण न रख कर ऐसे गम्भीर कदम उठा लेते हैं जिसमें जानमाल का नुकसान भी होता है और खुद को कानून के शिकंजे में फंसा कर परिवार सहित बरबाद हो जाते हैं।

इसमें जहां कानून और प्रशासन जिम्मेबार होता है वहीं बाहुबल का इस्तेमाल करके दूसरे पक्ष को उकसाने बाले पक्ष भी किसी भी घटना के लिये उतने ही दोषी होते हैं ।मन में आया हुआ कोई भी नकारात्मक विचार क्षण भंगुर होता है सरकार को भी इन पेचीदगियों पर विचार करके लोगों को समयबद्ध न्याय दिलाने और किसी भी निम्न कोर्ट का निर्णय यदि उच्च कोर्ट में बदलता है तो उसी मामले में निम्न कोर्ट के न्यायधीश पर भी इस मामले में कुछ न कुछ व्यवस्था हो उस मामले में या तो explanation हो या ACR में दर्ज हो या और भी कोई व्यवस्था सरकार जो उचित हो करे।

साथ ही सरकार व्यवस्था करे कि सभी विवादित मामले जो पुलिस ,कोर्ट या अन्य सरकारी दफ्तर में जाएँ उन सभी को मन को शांत करने, मानसिक दवाव को कम करने ,जैसे विभिन्न प्रवन्ध करे ताकि न कोई अनावश्यक रूप से किसी को उकसाये न महज उस विवाद को ही जीवन का सबकुछ समझे ।मनोवैज्ञानिक तौर पर ही लोगों को गुस्सा,लालच,ईर्ष्या,विरोध की भावना जैसी नकारात्मक भावनाओं से बचाया जा सकता है ।एक छोटे से जमीन के टुकड़े का विवाद जो शायद दशकों से सरकारी दफ्तरों में उलझ रहा था इसी लचरता के चलते जहां एक परिवार के माँ बेटे को लील गया वहीं दुसरा परिवार भी तबाह ही हो गया इस मामले में कानून तो दोनों पक्षों पर कार्रवाई करेगा ही ।मगर जिस लचर व्यवस्था ,प्रशासन,कर्मचारियों,अधिकारियो के कारण ये विवाद दशकों बाद भी उलझ ही रहा था क्या सरकार को ऐसी व्यवस्था नहीं करनी चाहिये ?कि उनके खिलाफ भी करवाई हो और उनकी जवाबदेही भी सुनिश्चित हो ?

यदि सरकार ने ऐसे विवादास्पद मामलों में मनोवैज्ञानिक तरीके से कॉउंसलिंग की व्यवस्था की होती तो शायद ये दोनों परिवार अपने अहम को छोड़ कर विवाद के हल तक इस जमीन के टुकड़े से ध्यान हटाकर जो कुछ करोड़ों की सम्पत्तियां उनके परिवारों के पास हैं उनपर ध्यान देते और उन सब के आगे इनके परिवारों की शांति ,और सम्पति का महत्व इनकी समझ में आया होता तो दोनों पक्षों को ये जमीन का टुकड़ा तुच्छ लगता ।क्योंकि आर्थिक और पारिवारिक तौर पर मेरी जानकारी अनुसार दोनों परिवार सम्प्पन हैं और इस जमीन के टुकड़े से शायद इनकाअहम के सिवाय कुछ भी रुका नहीं था। कुल मिलाकर इस दिल दहला देने बाले मामले की जवाबदेही से न दोनों परिवार बच सकते हैं न ही शासन और प्रशासन इस से अपने आप को पाक साफ मान सकते हैं यदि समय रहते अब भी इस व्यवस्था में परिवर्तन हो जाये और सरकार इस मामले को गम्भीरता से ले तो प्रदेश में कई परिवार वरबाद होने से भी बचेंगे और विवाद भी कम होंगे।

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