शिमला, सुरेंद्र राणा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई द्वारा सोमवार दोपहर को विवि के ऐतिहासिक पिंक पैटल पर विद्यार्थी परिषद के 74वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर एक नुक्कड़ नाटक *छात्र शक्ति* का आयोजन किया गया | पिंक पैटल पर आयोजित इस नुक्कड़ नाटक में विद्यार्थी परिषद की सात दशकों की यात्रा को नाटक के माध्यम से आम छात्रों के बीच रखा गया |
पिंक पैटल पर उपस्थित छात्रों को सम्बोधित करते हुए आकाश ने कहा विद्यार्थी परिषद की वैचारिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अपने स्थापना काल से ही विद्यार्थी परिषद राष्ट्र हित, समाज हित की आवाज़ को बुलंद करते हुए आई है | विद्यार्थी परिषद का मानना है छात्र कल का नहीं आज का नागरिक है | किसी भी राष्ट्र के निर्माण में उसकी युवा शक्ति का बहुत बड़ा योगदान होता है। बदलाव और परिर्वतन की कथाएं युवा शक्ति ही संभव करती है | अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ऐसा ही संगठन है, जिसने अपने स्थापना वर्ष 1949 से ही भारतबोध की चेतना के साथ कार्य प्रारंभ किया |
आजाद भारत का इतिहास भी अभाविप के इतिहास के साथ-साथ चलता है। 1947 में आजाद हुए इस महादेश के सपनों, उसकी आकांक्षाओं को लेकर, छात्र-युवाओं की जरूरतों को लेकर अनेक आंदोलन हुए हैं। अभाविप उन मुद्दों और आंदोलनों में शामिल होकर अपने भारतप्रेमी रूझानों से समाज को प्रभावित करती रही है। अभाविप आज देश का सबसे बड़ा छात्र संगठन है। जिसने राष्ट्र पुनर्निर्माण को ही अपना लक्ष्य घोषित किया है। यह एक ऐसा छात्र संगठन है जिसने अपने को किसी राजनैतिक दल के साथ नहीं जोड़ा बल्कि राष्ट्रीय भावधारा के साथ चलने और समकालीन राजनीति को राष्ट्रीय विचारों के अनुरूप बदलने का निर्णय लिया। इस नाते अभाविप की सांगठनिक और वैचारिक भावधारा का अवगाहन करना एक सामयिक कार्य है।
विद्यार्थी परिषद का कार्य करना कोई साधारण काम नहीं है | अन्य आंदोलनकारी संगठन आमतौर पर “चाहे जो मजबूरी हो हमारी मांगें पूरी हों” के मंत्र पर काम करते हैं। अभाविप इससे अलग हटकर अपने राष्ट्रीय कर्तव्यबोध को रेखांकित करती रही है। शिक्षा परिसरों में संघर्ष के बजाए संवाद, हठधर्मिता के बजाए सुझाव का मंत्र लेकर चलती है । इसलिए शिक्षाविद्, शिक्षक और विद्यार्थी यहां अलग-अलग नहीं हैं। परिषद एक ही ‘शैक्षिक परिवार’ से जुड़कर संवाद को सहज और प्रेरक बनाती है। अभाविप सिर्फ छात्रों की मांगों को लेकर मैदान में नहीं उतरती, उसके लिए राष्ट्र प्रथम है। परिषद सिर्फ छात्रसंघों पर कब्जे और राजनीतिक दलों का हस्तक बनने के बजाए, परिर्वतन और बदलाव के मंत्र पर काम करती आई है।
पूर्वोत्तर के साथ शेष राष्ट्र के भावनात्मक संबंधों का विस्तार करते हुए अभाविप ने ‘अंतरराज्यीय छात्र जीवन दर्शन’ के माध्यम से जो काम किया उसका एक प्रेरक इतिहास है। आप देखें तो असम में जो घुसपैठ के विरोध में आंदोलन चला उसने किस तरह देश का ध्यान एक बड़ी समस्या की ओर खींचा। इसी प्रकार देश के तमाम संकटों पर अभाविप की प्रतिक्रिया हमें चेताती रही है और संकटों की ओर ध्यानाकर्षित करती रही है |
आकाश ने कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में सामाजिक संगठनों के योगदान के संदर्भ में विद्यार्थी परिषद के कार्यों का स्थान अनुपम है। परिषद ने राष्ट्र सर्वोपरि की भावना से अपने जीवन व्रत को निभाया है और इसी मार्ग पर आगे चलने का उसका पवित्र संकल्प भी है। ”
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